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________________ कंपनों के अंतःप्रवाह पर चिंतन जब आपने एक बार खुले द्वारों को बंद कर दिया, प्रदूषित जल को सुखा दिया और कूड़े-करकट की सफाई कर दी, तब इन द्वारों को दुबारा खोलकर ताजे, स्वच्छ वर्षाजल को आने दें। यह वर्षाजल क्या है? यह मैत्री का बहाव है - मैत्री अर्थात् शुद्ध प्रेम, करुणा और संप्रेषण। इससे आपको अनुभव होता है कि आप मुक्त हैं, सभी के साथ एक ही लय में हैं। आप लोगों से उन्हें प्रभावित करने के लिए नहीं मिलते हैं। आप उनसे मिलते हैं उनके साथ कुछ बांटने के लिए। देखिए कि अब आप कितनी सहजता से लोगों के साथ मिलते हैं, क्योंकि ऊँच-नीच का भाव नहीं, कोई कड़वापन नहीं, दोषारोपण नहीं, निंदा नहीं। अब अगर कोई आपकी निंदा करे, तो आप उसे स्वीकार कर लेते हैं कि शायद मुझमें कोई ऐब रह गया है, जिसका अभी उन्मूलन नहीं हो पाया है। इसलिए आप उस व्यक्ति का आभार मानते हैं कि उसने आपको इस ऐब के बारे में बताया और ऐसा करके आपको और हल्का होने का अवसर प्रदान किया। यदि जीवन के प्रति अपने अभिगम में आप सच्चे हैं, तो जो व्यक्ति आपमें गलतियाँ ढूँढ़ा करता था या आपसे नफरत करता था, उसके दिल में भी आप जगह बना लेंगे। __ प्रबुद्ध व्यक्ति स्वयं को अपने भीतरी संसारों में कैद नहीं करते हैं। अपने आंतरिक सत्व को समझते हुए, वे किसी भी वस्तु से प्रभावित हुए बिना इस संसार में संप्रेषण और विचरण करते हैं। वे कषायों से लिप्त हुए बिना कार्य करना सीख लेते हैं, ताकि उनकी शुद्ध चेतना पर धूल और मैल न जमे और उनकी दृष्टि धूमिल न हो। यदि आप सच्चे मन से इस पर गंभीरता से काम करेंगे, तो आप अपनी जीवन शैली को बदल सकते हैं। दुनिया को दुःख की घाटी बनाने के बदले उसे आनंद का उपवन बना सकते हैं। आप पूर्ण स्वतंत्रता से जी सकेंगे - स्वयं में, अपने स्थान में, दूसरों के स्थान में नहीं। नकारात्मक कंपनों के बहाव से अप्रभावित आप अपनी सहज स्थिति में जी सकेंगे, अपनी शुद्ध एवं आनंदमयी चेतना की धारा में निमज्जित हो सकेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001806
Book TitleJivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size11 MB
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