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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ इस प्रकार दवाई, ओपरेशन, व्यायाम और पक्षाघात होने के कारण जानकर उसका उपचार (उदाहरण - ब्लडप्रेशर, डायाबिटीस) जैसे विभिन्न संयोजनों से पक्षाघात का त्वरित और नियमित उपचार हो सकता है । विशेषतः ऐसे मरीजों का मानसिक, सामाजिक, आर्थिक
और व्यावसायिक ढंग से पुनःस्थापन हो तो ही उपचार संतोषकारक हुआ है ऐसा माना जा सकता है।
जो मरीजों को पक्षाघात के बाद हाथ-पैर कडक हो जाते हैं (स्पास्टिसीटी) और अंग नियत स्थिति में जकड कर रह जायें (Fixed Position) ऐसे मरीजों को नियमित व्यायाम, अंग को हलका करनेवाली दवाई (लीयोरीसाल, टीजानीडीन, बेन्जोडायाझेपीन) योग्य मात्रा में दे सकते हैं । हाथ-पैर के विशिष्ट पट्टे (Splint) का उपयोग कर सकते हैं । विशेष में बोटुलीनम टोक्सीन (बोटोक्स/डीस्पोर्ट) नामक आधुनिक इंजेक्शन ध्यानपूर्वक नियत मात्रा में (यूनिट्स), संबंधित स्नायु में अनुभवी न्यूरोलोजिस्ट के द्वारा लेने से निश्चित लाभ होता है। उपरांत, व्यायाम द्वारा अंगों को शिथिल बनाकर और भी अच्छा लाभ लेकर अंगों को लगभग संपूर्ण कार्यरत बना सकते हैं । यह इंजेकशन, संबंधित मरीज़ को लाभ पहुँचा सकेगा या नहीं, वह जानने के लिए ऐशवर्थ स्कोर (Ashworth Score) तथा ऐसे ही अन्य फिजियोथेरापी स्कोर की सहायता ली जाती है। यह उपचार खर्चीला होने के बावजूद कई केसों में अत्यंत लाभदायी होता है ।
पक्षाघात के मरीज के उपचार उपरांत आरोग्य के संपूर्ण पहलूओं की योग्य समज और मार्गदर्शन देने के साथ-साथ चेतावनी चिह्न (टी.आई.ए.) प्राथमिक उपचार, त्वरित उपचार का महत्व आदि समजाना चिकित्सक का पवित्र कर्तव्य है। पक्षाघात के मरीजों के पारिवारिक डॉक्टर की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है, यह सरलता से समझा जा सकता है।
मरीज़ को भी स्वयं अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना चाहिए । आरामदायक जीवन छोड़कर व्यायाम और योग करने चाहिए । डॉक्टर की सलाह-सूचन अनुसार योग्य दवा-उपचार करने चाहिए और सामान्य जीवन अपनाकर तनाव से दूर रहना चाहिए । मनोवलण में आवश्यक हकारात्मक बदलाव लाने चाहिए, यह अवश्य लाभ करेगा ।
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