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5- पक्षाघात - लकवा (पेरेलिसिस) STROKE
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अस्पताल में भर्ती कराते समय हो सके तो जहां सुविधा हो उस जगह मरीज़ का सी. टी. स्केन करवाकर ले जाना अधिक हितकारक है । मरीज़ अधिक गंभीर अवस्था में हो तो तात्कालिक I.C.U. या सघन उपचार केन्द्र में ले जाना चाहिए |
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गंभीर अवस्था के मरीज़ को पक्षाघात के साथ मस्तिष्क में सूजन लगे तो उसे बेहोश होने से बचाने के लिए सूजन के उपचार की दवाईयां I.C.U. में देनी चाहिए । उसकी धड़कन, बी.पी. और श्वास आदि बराबर रखने के लिए योग्य कदम उठाने चाहिए । मिर्गी आए तो उसे काबू में करना चाहिए और ब्लडप्रेशर, डायाबिटीस आदि हो तो उसका भी तात्कालिक उपचार साथ- साथ में शुरू कर देना चाहिए |
पक्षाघात के उपचार के मुख्यतः छह कदम है :
(१) थ्रोम्बोलिटिक थेरापी (२) एन्टीथ्रोम्बोटिक थेरापी
(३) न्यूरोप्रोटेक्टिव थेरापी (४) कोम्प्लिकेशन हेतु थेरापी (५) न्यूरोसर्जरी
(६) सपोर्टिव थेरापी फिजियोथेरापी
(१) थ्रोम्बोलिटिक थेरापी :
निर्विवाद सत्य है कि थ्रोम्बोएम्बोलिझम से हुए पक्षाघात के केस में यदि ये एकदम नया विशिष्ट उपचार, पक्षाघात होने के १ से ३ घंटे में (और ज्यादा से ज्यादा ६ घंटे तक के समय में) दिया जाए तो अधिकतर केसों में :
(क) संपूर्णतः अवरुद्ध नलिका खुल जाती है ।
(ख) नलिका के अंदर की गांठ (थ्रोम्बस) पिघल जाती है; और (ग) मस्तिष्क के कोषों का नुकसान बंद हो जाता है और उससे होने वाले पक्षाघात और उसके दुष्परिणाम से मरीज़ बच जाता है ।
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