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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ इसके उपरांत रक्त की कुछ विशेष जांच, बायोकेमेस्ट्री (शुगर, किडनी के टेस्ट आदि), ई.सी.जी. तथा अन्य आवश्यक जांच द्वारा मरीज़ की शारीरिक स्थिति समझी जा सकती है। योग्य समय पर रक्त की चरबी का टेस्ट किया जाता है । हृदय की जांच में २D - इको (द्विपरिमाणिय ईको ) आदि द्वारा रोग के कारण और जानकारी भी उपलब्ध कराती है ।
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हमने आगे देखा कि जिन खतरनाक कारणों से पक्षाघात होता है, वही कारणों से हृदयरोग भी होता है । हृदयरोग तो पक्षाघात से भी ज्यादा फैला हुआ है । इसलिये ही पक्षाघात के मरीज़ों में हृदय रोगों की जांच का अत्यंत महत्व है, जिससे हृदयरोग रोका जा सके । अन्य रूप से तो, पक्षाघात के मरीज की मृत्यु पक्षाघात के कारण नहीं बल्कि अधिक प्रमाण में हृदयरोग से होती है ऐसा वैज्ञानिको का निष्कर्ष है ।
छोटी उम्र के पक्षाघात के मरीज़ों के बारे में पहले सुनिश्चित कर लेना चाहिये के उन्हें ब्लडप्रेशर या डायाबिटीस न हो । उनकी विशिष्ट जांच में एन्टीकार्डियो - लीपीन टेस्ट, होमोसीस्टीन टेस्ट आदि शामिल किए जाते है ।
रक्त नलिकाओं में कितनी खराबी है यह जानने के लिये केरोटिडवर्टिबल डोप्लर तथा एम. आर. एन्जियोग्राफी (कभी-कभी सी. टी. एन्जियोग्राफी, डी. एस. ए. एन्जियोग्राफी) किया जाता है । किस मरीज़ को कौन सी जांच करवानी है, यह डॉक्टर ही तय कर सकते है ।
पक्षाघात उपचार की विस्तृत जानकारी
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पक्षाघात की असर या चिह्नन दिखने के बाद तुरंत ही योग्य अस्पताल में उच्च फीजिशीयन अथवा न्यूरोलोजिस्ट के मार्गदर्शन अनुसार उपचार शुरू कर देना चाहिए । विलंब नुकसानकारक होता हैं ।
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थ्रोम्बोसिस रक्त का जम जाना
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