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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ लगभग १ से २ वर्ष तक डॉक्टर की देखरेख में ऐसा भोजन लेने से अच्छा परिणाम मिल सकता है । इसमें माता-पिता को महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है। सर्जरी या VNS जैसी यह खर्चीली पद्धति नहीं है । मरीज को शुरु में २ से ३ सप्ताह तक चिकित्सक की देखरेख में अस्पताल में रखना हितकर है। योग्य मामले में इस प्रकार का उपचार आजमाया जा सकता है ।
निःसंदेह है कि समय बीतने पर नई शोध, नई पद्धतियां (जैसे टारगेटेड ड्रग डिलीवरी), नई सर्जिकल पद्धति, सेल ट्रान्सप्लान्ट आदि द्वारा मिर्गी के मरीज का भविष्य बदल जाएगा । मिर्गी के मरीज को निराश होने की जरूरत नहीं है ।।
मिर्गी प्रचलित रोग होने के कारण इतनी चर्चा आवश्यक लगी है । यह चर्चा मेडिकल रूप से पूर्ण नहीं है, मैं यह बात ध्यान में लाना चाहता हूँ।
मिर्गी सम्बंधी कुछ भ्रांतियां अभी भी हैं । इससे कई बार मरीज उचित उपचार से वंचित रह जाता है : (१) मिर्गी मानसिक बीमारी है । यह सत्य नहीं है ।
(२) मिर्गी के दौरे के दौरान मरीज के हाथ में लोहे का टुकडा दबा कर रखना या प्याज अथवा जूते (चप्पल) सूंघाना । यह मान्यता गलत है । वास्तव में अधिकांशतः एक से पांच मिनिट में मिर्गी का दौरा स्वयं ही शांत हो जाता है।
(३) मिर्गी वंशानुगत है । सामान्यत: यह वंशानुगत नहीं है, किन्तु माता-पिता में से किसी एक को भी मिर्गी हो, तो बच्चे में मिर्गी होने की संभावना बढ़ जाती है ।
(४) मिर्गी के मरीज के लिये टॉनिक अच्छे । यह एक गुमराह करने वाली मान्यता है ।
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