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4 - मिर्गी के दौरे (Epilepsy)
उपरोक्त कारणों का योग्य ध्यान रखा गया हो और इन कारणों के नहीं होने की पुष्टी हो जाना, इस चरण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ये कारण अधिकतर टाले जा सकते है और इससे मिर्गी का सुयोग्य नियमन हो सकता है । इसके बावजूद और वैज्ञानिक मार्गदर्शन में दो अलग-अलग मुख्य दवाईयों (मोनोथेरापी) का प्रत्येक छह माह का योग्य डोज का कोर्स तथा कम से कम एक संयोजनयुक्त दवा (पोलीथेरापी) का ६ माह का कोर्स ( जरूरत पड़ने पर ऐसे दो कोर्स) आजमाने के बावजूद यदि हर महीने एक से दो बार दौरे दो वर्ष तक पडते रहें, तो उसे " अनियंत्रित मिर्गी" कहना चाहिए, ऐसा एक सामान्य मत है । हालाँकि यह लेबल प्रत्येक मरीज के लिए अलग होना चाहिये ।
मरीज के सामाजिक, आर्थिक व रोजगार के परिबल तथा मरीज की उम्र, उसके मानसिक व शारीरिक लक्षण अथवा खामियों को ध्यान में रख कर ही मरीज का अनियंत्रित मिर्गी (Refractory Epilepsy) से पीड़ित होने का निदान करना चाहिये । मिर्गी के तमाम मरीजों में करीब १५ से २२ प्रतिशत मरीज ऐसे होते हैं । ऐसे मरीजों के लिए निर्दिष्ट कदम (steps) उठाए जा सकते हैं :
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(A) नई दवाईयाँ आजमाई जा सकती है । सामान्यतः मुख्य दवाइयों के अलावा विशेष दवा के रूप में (Add-on drug) सेकन्ड अथवा थर्ड जनरेशन की दवा चिकित्सा विशेषज्ञ योग्य प्रकार की मिर्गी में उपयोग करते है । कभी-कभी नई दवा को मुख्य दवा (First line drug) के रूप में उपयोग किया जा सकता है ।
(B) ऑपरेशन : जब दवाईयों के तहत परिणाम नहीं मिले और मिर्गी के कारण के रूप में कोई इलेक्ट्रिकल या स्ट्रक्चरल फोकस ( केन्द्र बिन्दु) मिल जाए, तो योग्य सर्जरी द्वारा मिर्गी समस्या को हल किया जा सकता है । मिर्गी की सर्जरी के क्षेत्र में पिछले दशक में अत्यंत संतोषजनक प्रगति हुई है और इसके फलस्वरूप जिन मामलों में मिर्गी का केन्द्र (focus) मिला हो, ऐसे ऑपरेशन के लिए योग्य
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