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________________ 276 मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ कर श्वासमार्ग स्वच्छ रखना चाहिये । यह क्रिया सामान्यतः अस्पताल का स्टाफ करता है, परन्तु मरीज़ के सजाग सम्बन्धी भी यह अच्छी तरह से सीख के कर सकते हैं । वास्तव में इसके लिए डिस्पोझेबल केथेटर का प्रयोग बहुत ही योग्य है । वह बहुत ही सावधानी से करना चाहिये । मरीज़ को श्वास में परेशानी रहती हो या कफ अधिक रहता हो अथवा बेहोश अवस्था में रहे तो पोर्टेक्ष की एन्ड्रोट्रेकीअल ट्यूब रखी जाती है । वह ७ से १४ दिन तक रखी जा सकती है। उससे सक्शन बहुत अच्छी तरह होता है । श्वासोच्छ्वास में आराम मिलता है । Tracheostomy : मरीज़ को छाती में ज्यादा कफ रहता हो अथवा उसकी बेहोशी शीघ्र ठीक हो जाए ऐसा न लगता हो तो, ऐसे संजोग में डॉक्टर tracheostomy का निर्णय लेते है । इस प्रक्रिया में गले के ऊपर के आगे के भाग श्वासनली में छोटा छिद्र करके प्लास्टिक या मेटल ट्यूब रखकर उसके द्वारा श्वास की प्रक्रिया व्यवस्थित की जाती है । उसका विशेष लाभ यह है कि कफ जमा हुआ हो तो आसानी से निकाला जा सकता है, जिससे न्यूमोनिया का डर नहीं रहता है । श्वसनक्रिया में भी आराम हो जाता है। मरीज़ का श्वासोच्छ्वास सुधरता जाए, उसे होश आने लगे, कफ कम होने लगे, तब छिद्र छोटा करने के लिये ट्यूब की चौड़ाई क्रमशः कम करते रहना चाहिये। अन्ततः छिद्र बन्द हो जाता है और जख्म भर जाता है । श्वासोच्छ्वास अच्छा रहे, कफ न हो तथा हायपोस्टेटिकन्यूमोनिया न हो इसलिये प्रारम्भ से ही Chest Physiotherapy आरम्भ कर देनी चाहिये। आवश्यकतानुसार मरीज़ को नेब्युलाइज़र मशीन से श्वासमार्ग में योग्य दवाई तथा बाष्प पहुँचा कर श्वास मार्ग खुल्ला, स्वच्छ और उष्मायुक्त रख कर कफ को रोका जा सकता हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001801
Book TitleMastishk aur Gyantantu ki Bimariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudhir V Shah
PublisherChetna Sudhir Shah
Publication Year2008
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Science, & Medical
File Size17 MB
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