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________________ 20 - मायस्थेनिया ग्रेविस (Myasthenia Gravis) 229 इस तरह मायस्थेनिया ग्रेविस प्रमाण में कठिन और जटिल रोग है। प्रत्येक मरीज़ अनुसार मात्रा और चढ़ाव-उतार विभिन्न रहने से, तुरन्त निदान करके निष्णात चिकित्सक का उपचार किया जाये तो अधिकांशतः मरीज़ो को बचाया जा सकता है। कौन से मरीज को कौन सी दवाई या उपचारपद्धति देनी है, वह निष्णात डॉक्टर ही तय कर सकते है । • लेम्बर्ट इटन मायस्थेनिक सिन्ड्रोम (LEMS) : यह भी मायस्थेनिया जैसा न्यूरामस्क्यूलर जंक्शन का रोग है । ८५% (प्रतिशत) मरीज ४० वर्ष उपर की उम्र के होते है। ६७% मरीज में यह रोग फेफड़े के केन्सर से होने वाले पेरानियोप्लास्टिक डिसोर्डर के रूप में होता है । मायस्थेनिया से ये अलग पड़ता है क्योंकि (१) कंधे और जाँघ के स्नायुओं की कमजोरी इस रोग के मुख्य लक्षण है। (२) आँखो के स्नायु की कमजोरी इसमें मामूली होती है। (३) कई मरीजों को बोलने और खुराक निगलने में भी तकलीफ होती है। (४) अनुकंपी - परानुकंपी चेतातंत्र की तकलीफ जैसे कि आँखें सूकी हो जाना, कम दिखना, कब्जी, कम पसीना होना वगैरह भी इसमें देखने को मिलता है । Electrophysiology (इ.एम.जी. एवं. आर. एन.एस.) जाँच में ये . रोग मायस्थेनिया से तुरंत अलग पकड़ा जाता है । यह रोग की शक्यता वाले मरीज की संपूर्ण जाँच करवानी चाहिए और उसको कोई प्रकार का केन्सर, मुख्यतः फेफडे का है के नहि वह पता करना चाहिए । अगर मरीज को केन्सर हो तो उसकी सारवार करने से LEMS के लक्षणों में फायदा हो सकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001801
Book TitleMastishk aur Gyantantu ki Bimariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudhir V Shah
PublisherChetna Sudhir Shah
Publication Year2008
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Science, & Medical
File Size17 MB
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