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12 - मस्तिष्क की संक्रमित बीमारियाँ (CNS Infections)
145 जिससे पक्षाघात भी हो सकता है। मस्तिष्क प्रवाही (सी.एस.एफ.) की थेलीओं में प्रवाही का मार्ग अवरुद्ध हो तो हाइड्रोसीफेलस होता है, जिससे थेलीयाँ फूल जाती है और मरीज होश खो बेठता है या आँख की द्रष्टि भी खो बैठता है। करोड़रज्जु और रीढ़ की हड्डी में टी. बी. की असर हो तो पैर का पक्षाघात हो सकता है । • निदान :
इस बीमारी के निदान के लिए मरीज की विधिवत संपूर्ण जाँच और आवश्यक टेस्ट करवाये जाते है । कमर के पानी की जाँच (लम्बर पंक्चर) मस्तिष्क की संक्रमित बीमारी के निश्चित निदान के लिए लगभग अनिवार्य प्रक्रिया है । मस्तिष्क के टी. बी. मेनिन्जाईटीस में कमर के पानी की जाँच में प्रोटीन ज्यादा और शर्करा (सुगर) कम और लिम्फोसाइट नामक श्वेत कण अधिक मात्रा में आते है । इसके उपरांत कुछ मुश्किल केस में सी.एस.एफ.-पी.सी.आर., सी.एस.एफ.सी.आर.पी., सी.एस.एफ.-ए.डी.ए. आदि टेस्ट के तहत भी निदान में निश्चितता लाई जा सकती है। ऐसी निश्चितता इसलिए आवश्यक है कि एक बार मस्तिष्क के टी.बी. का निदान हो जाए तो मरीज को कम से कम डेढ़ से दो वर्ष तक उपचार की जरूरत पड़ती है। कभी कभी सीटी स्कैन और एम.आर.आई. की जाँच की भी जरुरत पड़ती है ।
बीमारी की शरुआत में कमर के पानी के रिपोर्ट में कभीकभी वाईरस अथवा मवाद के जंतु कारणभूत हो ऐसा लगता है और तीनो में से किसी का भी योग्य उपचार करने में कमी रह जाए तो भयजनक परिणाम आ सकते हैं । इसलिए इन तमाम संक्रमित बीमारीओं की व्यवस्थित जाँच अत्यंत आवश्यक है । अंदाज लगाकर उपचार नहीं करना चाहिए, ऐसा सभी निष्णात डॉक्टर मानते है । परंतु मस्तिष्क में ज्यादा सूजन हो, श्वास अधिक हो, मरीज की सामान्य परिस्थिति अच्छी न हो ऐसे संजोग में कमर का पानी निकालना खतरा साबित हो सकता है । ऐसे वक्त में स्कैन, एम.आर.आई. तथा अन्य सहायक सबूतों के आधार पर दवाई शुरु कर देनी चाहिए।
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