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गुजराती दूसरे संस्करण
स्तावना
भोजन के पूर्व ओपेटाइजर का जो महत्व है ऐसा ही महत्व पुस्तक पढ़ने से पहले प्रस्तावना का होता है। दोनों का काम भूख को उदीप्त करना, उत्सुकता जगाना और सबल पूर्वभूमिका रचित करना है । इस संदर्भ में समझदारी पैदा करने के लिए प्रस्तावना पढ़ना जरूरी है ।
बीमारी आए तब स्वाभाविक है कि मरीज़ और उसके संबंधी बड़ी मुसीबत और दुविधा में पड़ जाते है । अब क्या होगा? कुछ अनचाहा तो नहीं बनेगा? जीवनभर की परतंत्रता तो नहीं आ जाएगी? ऐसे कितने ही प्रश्न मरीज़ और उनके संबंधीओं को उलझाए रहते है । बीमारी की असर क्रमशः दिखाई देती है, तब की बात अलग है; परंतु लकवा जैसी बीमारी हमले के रूप में अचानक आक्रमण करें तब मरीज़ और कुटुंबीजनों के जीवन में अस्थिरता आ जाती है और कितने ही विचलित कर देने वाले प्रश्नार्थ चिह्न उभर कर सामने आ जाते है ।
बीमारी के बारे में अज्ञानता और मुख्यतः उसके बारे में गलत और भ्रामक मान्यतायें और 'मुझे कुछ होगा तो नहीं ?,' 'मैं कभी बीमार तो नहीं पढूंगा?' ऐसे आंतरिक भय परिस्थिति को ज्यादा खराब कर देते है। उसमें मरीज़ और उनके कुटुंबीजनों का कोई दोष नहि होता क्योंकि अपनी शिक्षणपद्धति और सामाजिक संरचना में आरोग्य की देखरेख किस प्रकार करनी चाहिए और उसका रक्षण कैसे करना और बीमारी के बारे में समग्र जानकारी, गंभीर बीमारियों का प्रारंभिक लक्षण-चिह्न कैसे होते है और उसे ध्यान में न ले तो कैसा दुःखद परिणाम आ सकता है व बीमारी लागू पड़ जाए तब उसके लिए आवश्यक मानसिक-आर्थिक आयोजन के बारे में स्कूल-महाविद्यालयों में या अन्य किसी माध्यम द्वारा सीखने का कोई संगठित, बुद्धिगम्य और परिणामलक्षी प्रयत्न हुआ नहीं है और इसके बारें में कुछ भी समझाया - सिखाया नहीं जाता । (वर्तमान समय में अपने राष्ट्र के कुल बजट का एक प्रतिशत हिस्सा ही स्वास्थ्य रक्षण के लिए दिया जाता है ।)
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