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8 - मूवमेन्ट डिस्ओ र्डर्स और डिस्टोनिया (Movement disorders & dystonia) 101
दवाई और मुख्यतः बोटुलिनम टोक्षिन के उपचार से अधिकतर भाग में इस प्रकार का डिस्टोनिया नियंत्रण में रहता है । लेकिन कभी जरूरत पड़ने पर सर्जरी भी करवा सकते है । सर्जरी में राईझोटोमी, डिनर्वेशन प्रोसिजर इत्यादि से ट्रीटमेन्ट किया जाता है। कभी कभी स्पाइनल कोर्ड स्टिम्युलेशन किया जाता है । डिस्टोनिया के कई केस में रोगग्रस्त स्नायुओं पर की त्वचा पर लगाया पट्टा (स्प्लिन्ट) उपयोग किया जा सकता है ।
डिस्टोनिया के कई केसों को सेकन्डरी डिस्टोनिया कहते है । उसमें मस्तिष्क में किसी न किसी प्रकार की क्षति-कमी-विकृति होती है जैसे कि कोषों के चयापचय की वंशानुतागत बीमारी, विल्सन डिसिज, आनुवांशिक डिस्टोनिया (डिस्टोनिया मस्क्युलोफोर्मन्स), मस्तिष्क की गांठ, रक्त की क्षति, कई दवाई के दुष्प्रभाव इत्यादि । इसमें से कई कारणों को दूर करने से डिस्टोनीआ में राहत होती है। कई कारणों को सही ढंग से कंट्रोल किया नहीं जा सकता ।
डिस्टोनिया के उपरांत अन्य कई मुवमेन्ट डिस्ओर्डर्स भी महत्वपूर्ण है। (B) कोरीआ (Chorea)
बेझल गेन्गलीआ में स्थित कोडेट न्युक्लीअस की कार्यप्रणाली में समस्या होने से, हाथ-पैर, गर्दन, चहेरे का विचित्र, अर्धहेतुक हलनचलनकि जो अधिकतर क्रमबद्ध तरीके से पुनरावर्तित होता है।
(१) रामेटिक फीवर नाम से प्रख्यात जोडों के दर्द का कोरीआ (२) हंटिग्टन कोरीआ (वंशानुगत) । (३) सेनाइल कोरीआ (बुढापे में होता)। (४) डिप्थेरिया, व्हुपिंग कफ, (काली खांसी) रूबेला इत्यादि
रोगों में होता हुआ कोरीआ। (५) थाईरोइड बढ़ने से होता हुआ कोरीआ । (६) न्यूरो एकेन्थोसिस कोरीआ ।
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