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8- मूवमेन्ट डिस्ओर्डर्स और डिस्टोनिया (Movement disorders & dystonia) आनुवंशिक (जिनेटिक) या वंशानुगत कारणों से या पर्यावरण के कारण, मरीज़ की जीवनशैली, आहार और मानसिक कारण इत्यादि के संयोजन से यह रोग संभवित है ।
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कुछ भी हो, इसकी चिकित्सा भी इतनी ही मुश्किल है । उसकी दवाई अंदाज करके ही दी जाती है, क्योंकि उसके कारण का भी पता नहीं है । उदा. ट्राइहेक्षी फेनीडील, हेलोपेरीडोल, बेन्जोडाइजेपीन (जैसे कि क्लोनाजेपाम ), टेट्राबेन्झिन इत्यादि अनेक दवाई अकेले या संयोजन के रूप में दी जा सकती है। मरीज़ की प्रकृति अनुसार डोज़ भी बदलता है । लेकिन ये सभी दवाई केवल ३०% से ४०% केस में ही असरकारक होती है। दवाई का असर हो तबतक मरीज़ ठीक रहता है । समय बीतने के साथ दवाई का असर भी कम होता जाता है । परंतु युवा मरीज़ों के लिए इन दवाई का दुष्प्रभाव चिंताजनक हैं । इस कारण डोक्टरों को इन दवाई का अधिक उपयोग न करके मरीज़ की तकलीफ अनुसार कुछ हद तक ही संयमित उपयोग करना चाहिए ।
उसके बदले नई प्रकार की ट्रीटमेन्ट जिसे बोटुलीनम इंजेकशन (बोटोक्स / डीस्पोर्ट) कहते है, इसे स्नायु में योग्य मात्रा में उपयोग करने से इन सभी प्रकार के डिस्टोनिया में अच्छा परिणाम लाया जा सकता है । परिणामस्वरूप उपरोक्त समझाए हुए सर्वाइकल डिस्टोनीआ (टोकोलिस) से लेकर ब्लेफेरोस्पाझम हेमीफेशियल डिस्टोनीआ, राइटर्स क्रेम्प इत्यादि में यह औषधि चमत्कारिक और लाभदायक सिद्ध हुई है ।
इस प्रकार के इंजेक्शन देने के लिए योग्य ट्रेनिंग प्राप्त किए हुए न्यूरोलोजिस्ट डॉक्टर भारत देश में मुंबई, अहमदाबाद, कोलकाता और दिल्ली और अन्य शहरों में उपलब्ध है । इस इंजेकशन को किस स्नायु में, कितनी मात्रा में देना वह डोक्टर तय करते हैं, जिससे इसका दुष्प्रभाव न हो । उदा. जिस स्नायु में अधिक खिंचाव हो वहाँ इस इंजेकशन को देने से स्नायुओं में संतुलन आ जाता है, स्नायु क्रिया ठीकठाक हो जाती है और खिंचाव से दर्द हो तो वह भी चला जाता है । कस्मेटिक तरीके से भी मरीज़ ठीक रहता है और वह व्यवसाय, नौकरी दुबारा यथावत् कर सकता है ।
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