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8 - मूवमेन्ट डिस्ओ र्डर्स और डिस्टोनिया (Movement disorders & dystonia) 97
आकृति में कीए गए निर्देश अनुसार यह फंटल लोब, ग्लोबस पेलीडस, पुटामेन, कोडेट न्यूक्लीयस, क्लोस्ट्रम तथा एमीग्डेला नामक कोषों के समूह का बना हुआ है । यह पीरामिडल सिस्टम को अपने तरीके से कंट्रोल करता है। फिर भी इस सिस्टम की कार्यवाही में रुकावट हो तो पक्षाघात अर्थात् पेरेलिसिस नहीं होता, परंतु नीचे बताई दो प्रकार की तकलीफ हो सकती है जिसे हम लक्षण-चिह्नसमूह या सिंड्रोम नाम से पहचानेंगे :
(क) एकाइनेटिक रीजीड सिन्ड्रोम जैसे कि कंपन (पार्किन्सोनिझम - जिसके विषय में हम अगले प्रकरण में देखेंगे), जिसमें हाथ-पैर कडक हो जाते है, मरीज़ की सभी क्रिया मंद-कमधीमी हो जाती है, और हाथ-पैर में कंपन होती है। डोपामीन नामक केमिकल की मात्रा मस्तिष्क में कम हो जाने से ऐसा होता है।
(ब) हाईपरकाइनेटिक डिस्ओर्डर्स : संक्षिप्त रूप में यह कहा जा सकता है कि इसमें मस्तिष्क में डोपामीन तत्व की मात्रा बढ़ जाती है । स्वाभाविकतः उससे स्वैच्छिक नियंत्रण बाहर की अधिक क्रियाएं अनआवश्यक होती है, जैसे कि डिस्टोनिया, कोरीआ, डिस्काईनेजीया, हेमीबेलीस्मस । (A) fstelfaren (Dystonia ) :
जब कोई मुद्रा लम्बे समय तक एक ही स्थिति (पोस्चर) में रहे तो इसे डिस्टोनिया कहते हैं । गर्दन एक तरफ खिंची हुई अवस्था में झुकी रहे तो उसे सर्वाइकल डिस्टोनिया (टोर्टीकोलिस) कहते हैं । आँख
और मुँह के स्नायु बार-बार एक ही तरफ खिचे रहे तो उसे हेमीफेसियल स्पाज़म कहते हैं। आँखे अनैच्छिक तरीके से बंद रहे, मुख्यतः सामने खड़े व्यक्ति से आँख मिलाकर बात करने में भी मुश्किल हो तो उसे ब्लेफेरोस्पाझम कहते है । मुँह के या जिह्वा के स्नायु विचित्र प्रकार से लेकिन कुछ क्रमबद्ध तरीके से हिले तो उसे फेसीयल डिस्टोनिया अथवा मीग्स सिन्ड्रोम कहते है।
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