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________________ ७१ पूजा विधान और धार्मिक अनुष्ठान निम्न है ॐ नमो भगवते श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय शशाङ्कशङखगोक्षारहारधवलगात्राय घातिकर्मनिर्मलोच्छेदनकराय जातिजरामरणविनाशनाय त्रैलोक्यवशङ्कराय सर्वासत्त्वहितङ्कराय सुरासुरेन्द्रमुकुट- कोटिघृष्टापादपीठाय संसारकान्तारोन्मूलनाय अचिन्त्यबलपराक्रमाय अप्रतिहतचक्राय त्रैलोक्यनाथाय देवाधिदेवाय धर्मचक्राधीश्वराय सर्वविद्यापरमेश्वराय कुविद्यानिधनाय, तत्पादकङ्कजाश्रमनिषेविणि! देवि! शासनदेवते! त्रिभुवनसङ्क्षोभिणि! त्रैलोक्याशिवापहार कारिणि! स्थावरजङ्गमविषमविषसंहारकारिणि! सर्वाभिचारकर्माभ्यवहारिणि! परविद्याच्छेदिनि! परमन्त्रप्रणाशिनि! अष्टमहानागकुलोच्चाटनि! कालदुष्टमृतकोत्थापिनि! सर्वविघ्नविनाशिनि! सर्वरोगप्रमोचनि! ब्रह्मविष्णुरुद्रेन्द्रचन्द्रादित्यग्रहनक्षत्रोत्पातमरणभयपीडासम्मर्दिनि! त्रैलोक्यमहिते!भव्यलोकहितङ्करि विश्वलोकवशङ्करि अत्र महाभैरवरूपधारिणि! महाभीमे! भीमरूपधारिणि! महारौद्रि! रौद्ररूपधारिणि! प्रसिद्धसिद्धविद्याधर यक्षराक्षसगरुडगन्धर्व किन्नर किंपुरुषदै त्योरगरुद्रेन्द्र पूजिते! ज्वालामालाकरालितदिगन्तराले! महामहिषवाहने! खेटककृपाणत्रिशूलहस्ते! शक्तिचक्रपाशशरासनविशिखपविराजमाने! षोडशार्द्धभुजे! एहि एहि हम्ल्यूँ ज्वालामालिनि! ह्रीं क्लीं ब्लूँ फट् द्राँ द्रीं हाँ ह्रीं हूँ हैं ह्रौं हः ही देवान् आकर्षय आकर्षय, सर्वदुष्टग्रहान् आकर्षय आकर्षय, नागग्रहान् आकर्षय आकर्षय, यक्षग्रहान् आकर्षय आकर्षय, राक्षसग्रहान् आकर्षय आकर्षय, गान्धर्वग्रहान् आकर्षय आकर्षय, गान्धार्थग्रहान् आकर्षय आकर्षय ब्रह्मग्रहान् आकर्षय आकर्षय, भूतग्रहान् आकर्षय आकर्षय, सर्वदुष्टान् आकर्षय आकर्षय, चोरचिन्ताग्रहान् आकर्षय आकर्षय, कटकट कम्पावय कम्पावय, शीर्षं चालय चालय, बाहुं चालय चालय, गात्रं चालय चालय, पाटं चालय चालय, सर्वाङ्गं चालय चालय, लोलय लोलय, धूनय धूनय, कम्पय कम्पय, शीघ्रमवतारं गृह गृण्ह, ग्राहय ग्राहय, अचेलय अचेलय, आवेशय आवेशय इम्ल्यूँ ज्वालामालिनि! ही ली ब्लूँ द्राँ द्रीं ज्वल ज्वल र र र र र र रां प्रज्वल, प्रज्वल हूँ प्रज्वल प्रज्वल, धगधगधूमान्धकारिणि! ज्वल ज्वल, ज्वलितशिखे! देवग्रहान् दह दह, गन्धर्वग्रहान् दह दह, यक्षग्रहान् दह दह, भूतग्रहान् दह दह, ब्रह्मराक्षसग्रहान् दह दह, व्यन्तरग्रहान् दह दह, नागग्रहान् दह दह, सर्वदुष्टग्रहान् दह दह, शतकोटिदैवतान् दह दह, सहनकोटिपिशाचराजान् दह दह, घे घे स्फोटय स्फोटय, मारय मारय, दहनाक्षि! प्रलय प्रलय, धगधगितमुखे! ज्वालामालिनि! हाँ हीं हूं हौं हः सर्वग्रहहृदयं दह दह, पच पच, छिन्द छिन्द, भिन्धि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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