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________________ ४३ जैन देवकुल के विकास में हिन्दू तंत्र का अवदान की कल्पना से ही अष्ट दिक्पालों की कल्पना अस्तित्व में आई थी। मुझे ऐसा लगता है कि इन्हीं चार लोकपालों की अवधारणा को ब्राह्मण परम्परा की अष्ट दिक्पालों की अवधारणा से समन्वित करते हुए प्रारम्भ में अष्ट दिक्पालों और उसके पश्चात् दस दिक्पालों की अवधारणा जैनों में भी विकसित हुई । जैनों में अष्ट दिक्पालों की अवधारणा प्रतिष्ठासारोद्धार (३/१८६ - १६५) में आठ दिक्पालों की ही अवधारणा मिलती है। इसमें इन्द्र को पूर्व दिशा का अग्नि को दक्षिण-पूर्व अर्थात् आग्नेय कोण का, यम को दक्षिण दिशा का नैऋति को दक्षिण-पश्चिम दिशा का अर्थात् नैऋत्य कोण का, वरुण को पश्चिम दिशा का वायु को उत्तर-पश्चिम दिशा का अर्थात् वायव्य कोण का, कुबेर का उत्तर दिशा का और ईशान को उत्तर-पूर्व दिशा का अर्थात् ईशान कोण का अधिपति माना गया है। यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि जिन जैन ग्रन्थों में दस दिक्पालों की अवधारणा उपलब्ध होती है, उनमें ब्रह्म या सोम को उर्ध्व लोक का और नागदेव या धरणेन्द्र को अधोदिशा का स्वामी बतलाया गया है। यह बात विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि जहाँ जैन साहित्यिक स्रोतों में प्रायः दस दिक्पालों का भी उल्लेख मिलता है, वहीं जैन मंदिरों में प्रायः आठ दिक्पालों का ही अंकन पाया जाता है। डॉ० मारुतिनंदन तिवारी की सूचना के अनुसार केवल धानेराव, राजस्थान जिला पालीके एक अपवाद को छोड़कर जहाँ दस दिक्पालों का अंकन है शेष सभी मंदिरों में आठ दिक्पालों का ही अंकन हुआ है। यह स्पष्ट है कि जैन परम्परा में लोकपालों दिक्पालों / दिक्पालों की यह अवधारणा काल क्रम में विकसित है और हिन्दू परम्परा के समरूप ही है। हिन्दुओं में अष्टदिक्पालों की अवधारणा दिक्पालों की यह अवधारणा प्रायः सभी भारतीय धर्मो में सामान्य रूप से स्वीकृत रही है और सभी तान्त्रिक साधनाओं में भी इनकी उपासनाओं के संकेत मिलते हैं। ब्राह्मण परंपरा में भी इन्हें दिशाओं के देवता ही माना गया और आठ दिशाओं के आधार पर ही दिक्पालों की संख्या भी आठ मानी गई है । हिन्दू परम्परा के अष्ट दिक्पाल इसप्रकार हैं- (१) इन्द्र (२) अग्नि (३) यम (४) निर्ऋति (५) वरुण (६) वायु (७) कुबेर और (८) ईशान । हिन्दू तांत्रिक परम्परा इन्द्र को पूर्व दिशा का अग्नि को दक्षिण-पूर्व का, यम को दक्षिण का, निर्ऋति दक्षिण-पश्चिम का, वरुण को पश्चिम का, वायु को उत्तर-पश्चिम का, कुबेर को उत्तर का और ईशान को उत्तर- - पूर्व का अधिनायक माना जाता है। हिन्दू Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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