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________________ जैनधर्म और तान्त्रिक साधना ४२ हिन्दू देवकुल में आपस में किसी प्रकार सम्बन्धित नहीं है। जैन यक्ष-यक्षी युगलों में अधिकांश इसी वर्ग के हैं। दूसरी कोटि में ऐसे यक्ष-यक्षी युगल हैं जो पूर्वरूप में हिन्दू देवकुल में भी परस्पर सम्बन्धित हैं, जैसे श्रेयांशनाथ के यक्ष-यक्षी ईश्वर एवं गौरी। तीसरी कोटि में ऐसे युगल हैं जिनमें यक्ष एक और यक्षी दूसरे स्वतन्त्र सम्प्रदाय के देवता से प्रभावित हैं। ऋषभनाथ के गोमुख यक्ष एवं चक्रेश्वरी यक्षी इसी कोटि के हैं जो क्रमशः शैव एवं वैष्णव धर्मों के प्रतिनिधि देव हैं।" इस प्रकार दो बातें स्पष्ट हैं प्रथम तो यह कि जैन देवमण्डल के सदस्य के रूप में यक्ष-यक्षियों की अवधारणा एक परवर्ती घटना है। इसका प्रारम्भ लगभग चतुर्थ-पञ्चमशती से होता है और अपने पूर्ण विकसित रूप में यह लगभग दसवीं-ग्यारहवीं शती में अस्तित्व में आई है क्योंकि पाँचवीं शती के पूर्व इन शासन रक्षक यक्ष-यक्षियों का उल्लेख जैन आगम ग्रन्थों में नहीं मिलता है। जिन यक्ष-यक्षियों के उल्लेख आगमों में है वे लौकिक देवता के रूप में है, न कि जैन देवमण्डल के सदस्य के रूप में । आगमों से मात्र इतना ही संकेत अवश्य मिलता है कि कुछ यक्ष जिन शासन के प्रति अनुग्रहशील थे। जैसे उत्तराध्ययन के १२वें अध्याय में उल्लिखित-तिंदुक यक्ष आदि दूसरे यह भी स्पष्ट है कि इन यक्ष-यक्षियों में से अनेक नाम हिन्दू तान्त्रिक परम्परा से लिये गये है और मात्र यही नहीं इनके मूर्ति लक्षणों का निर्धारण भी उसी परम्परा के प्रभावित है। इन महाविद्याओं एवं यक्ष-यक्षियों के अतिरिक्त नवग्रह, दस दिक्पाल, चौसठ योगिनियाँ, बावन वीर तथा अनेक क्षेत्रपाल (भैरव) भी जैन देवकुल के सदस्य बना लिये गये हैं। इन सबका ग्रहण मूलतः तान्त्रिक एवं क्षेत्रीय लौकिक परम्पराओं से हुआ है। लोकपाल–दिक्पाल जैन परम्परा में दिक्पालों की अवधारणाओं का विकास लोकपालों की अवधारणा के पश्चात् ही हुआ है। जिस प्रकार ब्राह्मण परम्परा में दिक्पालों की अवधारणा थी, उसी प्रकार जैन परम्परा में लोकपालों की अवधारणा थी। तिलोयपण्णत्ति में चार लोकपालों का उल्लेख है। इनके नाम हैं-सोम, यम, वरुण और धनद या कुबेर, जिन्हें वैश्रमण भी कहा गया है। जैन परम्परा में इन चारों का प्राचीनतम उल्लेख ऋषिभाषित (४-३ री शती ई० पू०) में अर्हत् ऋषि के रूप में मिलता है। तिलोयपण्णत्ति(३/७१) में इन लोकपालों में सोम को पूर्व दिशा का यम को दक्षिण दिशा का, वरुण को पश्चिम दिशा का और कुबेर को उत्तर दिशा का लोकपाल माना गया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि चार लोकपालों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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