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जैनधर्म और तान्त्रिक साधना २८ सं० महाविद्या वाहन भुजा-संख्या
(ख) दि० कूर्म चार
आयुध हाथों में केवल चक्र और खड़ग का उल्लेख है।
चार
दो हाथों में ज्वाला; या चारों हाथों में सर्प
११ (i)सर्वास्त्रमहाज्वाला शूकर या या ज्वाला-श्वे० कलहंस या
बिल्ली (ii) ज्वालामालिनी- महिष
आठ
दि०
चार
१२ मानवी- (क) श्वे० पद्म
(ख) दि० शूकर
धनुष, खड्ग, बाण या चक्र, फलक आदि। देवी ज्वाला से युक्त है। वरदमुद्रा, पाश, अक्षमाला, वृक्ष (विटप) मत्स्य, त्रिशूल, खड्ग. एक भुजा की सामग्री का अनुल्लेख है सर्प, खड्ग, खेटक, सर्प या वरदमुद्रा
चार
१३ (i) वैरोट्या-श्वे०
सर्प या गरुड़ चार
या सिंह
(ii) वैरोटी-दि०
सिंह
चार
करों में केवल सर्प के प्रदर्शन का उल्लेख है।
अश्व
१४ (i) अच्छुसा-श्वे०
(ii) अच्युता-दि०
अश्व
१५ मानसी
(क) श्वे० हंस या
सिंह (ख) दि० सर्प
चार शर, चाप, खड्ग, खेटक चार ग्रन्थों में केवल खड्ग और वज्र धारण
करने के उल्लेख हैं। चार वरदमुद्रा, वज, अक्षम.ला, वज्र या
वरदमुद्रा हाथों की दो हाथों के नमस्कार-मुद्रा में होने का संख्या का उल्लेख है। अनुल्लेख
है।
चार
१६.. महामानसी-(क)श्वे० सिंह या चार खड़ग, खेटक, जलपात्र, रत्न या मकर
वरद या अभयमुद्रा (ख) दि० हंस
देवी के हाथ प्रणाममुद्रा में होंगे (प्रतिष्ठासारसंग्रह); वरदमुद्रा, अक्षमाला, अंकुश, पुष्पहार (प्रतिष्ठासारोद्धार एवं
प्रतिष्ठातिलकम्) यहाँ यह ज्ञातव्य है कि प्रारम्भ में जैन परम्परा में स्त्री या शस्त्र से युक्त देवों या देव प्रतिमाओं को आराध्य या उपास्य मानने का स्पष्ट निषेध किया था, किन्तु कालान्तर में हिन्दू परम्परा के प्रभाव से देव प्रतिमाओं में शस्त्रों का प्रदर्शन जैन परम्पराओं में भी मान्य हो गया है यद्यपि ज्ञातव्य है कि यह सब तीर्थंकरों से निम्न श्रेणी के देवों के सम्बन्ध में ही मान्य हआ है।
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