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३६२ . जैन धर्म का तंत्र साहित्य संबंध में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है। प्रस्तुत कृति में पांच अधिकार हैं-प्रथम अधिकार में सर्वज्ञाभमन्त्र 'ॐ श्री ही अर्ह नमः' तथा सर्वकर्मकरयन्त्र 'ॐ ही श्रीं अहँ नमः' - इन दोनों मन्त्रों के ध्यान के विषय में बताया है। द्वितीय अधिकार में वशीकरण एवं आकर्षण सम्बन्धी मंत्र का तथा तृतीय अधिकार में स्तम्भनादि से सम्बन्धित मंत्रों तथा स्तोत्रों का वर्णन है। चतुर्थ अधिकार में शुभाशुभसूचक सुन्दर और तत्काल अनुभव करने वाले आठ मंत्रों का समावेश है। पाँचवें अधिकार में गुरु-शिष्य की योग्यता एवं अयोग्यता का निरूपण है। इसे पंडित अम्बालाल प्रेमचन्द्र शाह ने सम्पादित कर के प्रकाशित करवाया है। चिन्तामणि पाठ
इस कृति का रचनाकाल एवं इसके कर्ता का परिचय अज्ञात है। इसमें भगवान पार्श्वनाथ के स्तोत्र एवं विविध प्रकार की पूजाओं का उल्लेख किया गया है। साथ ही इसमें यक्ष-यक्षिणियों, सोलह विद्यादेवियों, एवं नवग्रह पूजा विधान आदि भी वर्णित हैं। यह रचना मन्त्रद्वारा पवित्र होने पर अथवा यन्त्र की शक्ति से युक्त होने पर शांति एवं पुष्टि कर्म करने का विधान करती है। यह ग्रंथ श्री सोहनलाल दैवोत के संग्रहालय में सुरक्षित है। चिन्तारणि
इस कृति के संकलनकर्ता एवं रचनाकाल के विषय में कोई सूचना नहीं मिलती। अनुमान लगाया जा सकताहै कि १६वीं शती में सागवाड़ा गद्दी के भट्टारक अथवा उनके किसी ने इसका संग्रह किया होगा। इसमें मंत्र, तंत्र एवं औषधि प्रयोग विधि में वागड़ी, मारवाड़ी तथा मालवी बोली के शब्दों का प्रयोग मिलता है। इसमें कही-कहीं शिव एवं हनुमान मंत्रों का भी समावेश है। यह कृति भी श्री सोहनलाल दैवोत के निजी संग्राहलय में उपलब्ध है। सूरिमंत्रस्मरणविधि
यह कृति राजगच्छीय विजयप्रभसूरि के द्वारा विरचित है। इसमें सूरिमंत्र संबंधी साधना विधि दी गई है। यह कृति भी सूरिमंत्रकल्पसम्मुच्चय, संपादक-मुनि जम्बूविजयजी, द्वितीय भाग में पृ० २२१ से २२५ तक प्रकाशित
संक्षिप्तसूरिमंत्र विचार
यह कृति भी सूरिमंत्रकल्पसमुच्चय, द्वितीय भाग में पृ० २२६ से २३०
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