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________________ ३५० जैन धर्म का तंत्र साहित्य से संबंधित सर्वप्रथम यदि कोई ग्रन्थ बना है तो वह अंगविज्जा है। अंगविज्जा (अंगविद्या) के प्रारम्भ में कुछ लब्धिधारियों के प्रति नमस्कार का वर्णन मिलता है तथा इसके प्रारम्भ के ही अष्टम अध्याय तथा प्रथम पटल में विद्याओं और विद्याओं से संबंधित मंत्रों का उल्लेख आया है। डा० वासुदेवशरण अग्रवाल का मत है कि यह ग्रन्थ मूल रूप में कुषाण काल की रचना है। इस ग्रन्थ में नमस्कार मंत्र के विकास के भी सभी चरण उपलब्ध होते हैं। नमस्कार मंत्र का द्विपदात्मक प्राचीन रूप हमें खारवेल के शिलालेख में मिलता है और यही रूप इस ग्रन्थ में भी मिला है यद्यपि इसमें सम्पूर्ण नमस्कार मंत्र का भी उल्लेख आया है। इससे ऐसा लगता है कि बाद में इसमें परिवर्धन भी किया गया है। यहां यह भी ज्ञातव्य है कि लब्धिधरों की चर्चा यद्यपि प्रश्नव्याकरणसूत्र के वर्तमान संस्करण में उपलब्ध है, किन्तु यह परवर्ती है और लगभग छठी-सातवीं शती में अस्तित्व में आयी। इसके पूर्व लब्धिधरों की चर्चा हमें उमास्वाति के तत्त्वार्थसूत्र के स्वोपज्ञभाष्य में मिलती है। किन्तु उससे भी पूर्व यह चर्चा अंगविद्या में उपलब्ध है। यद्यपि यहां सभी लब्धिधारियों की चर्चा नहीं है। अंगविज्जा के अनुसार अंग, स्वर, लक्षण, व्यंजन. स्वप्न, छींक, भौम और अंतरिक्ष- ये आठ निमित्त के आधार हैं और इन आठ महनिमित्तों द्वारा भूत-भविष्य का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार अंगविज्जा मूलतः तो निमित्त शास्त्र का ग्रन्थ है, किन्तु इसमें मन्त्र शास्त्र संबंधी सामग्री भी उपलब्ध है। जयपायड अपरनाम प्रश्नव्याकरण (लगभग चतुर्थ शती) यह प्रश्न व्याकरणसूत्र के प्रथम प्राचीन संस्करण और अन्तिम उपलब्ध संस्करण के मध्य का संस्करण रहा है। यह भी मूलतः निमित्तशास्त्र का ग्रन्थ है, जिसमें स्वरों एवं व्यञ्जनों के आधार पर प्रश्नकर्ता के लाभ-अलाभ जीवन-मरण आदि का कथन किया जाता है। इस ग्रन्थ का मूल आधार मातृकापद अर्थात् स्वरव्यञ्जन है। तन्त्रसाधना में भी इन मातृकापदों को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। अतः इसको भी किसी सीमा तक तन्त्र से संबंधित माना जा सकता है। इसकी १३३६ में लिखी गई ताडपत्रीय प्रति जेसलमेर भण्डार में उपलब्ध है। इसमें निम्न प्रकरण उपलब्ध होते हैं १. सामासिक शिक्षा प्रकरण, २. संकट-विकट प्रकरण, ३. उतराधर प्रकरण, ४. अभिघात प्रकरण, ५. जीवसमास प्रकरण, ६. मनुष्य प्रकरण, ७. पक्षि प्रकरण, ८.चतुष्पद प्रकरण, ६. जीवचिन्ता, १०. धातुप्रकृति, ११. धातुयोनि, १२. मूलभेद, १३. मूलयोनि, १४. मुष्टिविभाग प्रकरण १५. वर्ण-रस-गन्ध-स्पर्श Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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