SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 359
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३७ __ जैनधर्म और तांत्रिक साधना लिए अभ्यास करना चाहिए। अचानक उनका ज्ञान नहीं हो सकता। इन चार मंडलों में संचार करने वाले वायु को भी चार प्रकार का जानना चाहिए। १. पुरन्दर-वायु पुरन्दर वायु-पृथ्वी तत्व का वर्ण पीला है, स्पर्श कुछ-कुछ उष्ण है और वह स्वच्छ होता है। वह नासिका के छिद्र को पूरा कर धीरे-धीरे आठ अंगुल बाहर तक बहता है। २. वरुण-वायु जिसका श्वेत वर्ण है, शीतल स्पर्श है और जो नीचे की ओर बारह अंगुल तक शीघ्रता से बहने वाला है, उसे 'वरुण वायु' जल-तत्व कहते हैं। ३. पवन-वायु पवन-वायु तत्व कहीं उष्ण और कहीं शीत होता है। उसका वर्ण काला है। वह निरन्तर छ: अंगुल प्रमाण बहता रहता है। ४. दहन-वायु दहन वायु-अग्नि तत्व उदीयमान सूर्य के समान लाल वर्ण वाला है, अति उष्ण स्पर्श वाला है और बवंडर की तरह चार अंगुल ऊँचा बहता है। जब पुरन्दर-वायु बहता हो तब स्तंभन आदि कार्य करने चाहिए। वरुण-वायु के बहते समय प्रशस्त कार्य, पवन-वायु के बहते समय मलिन और चपल कार्य और दहन-वायु के बहते समय वशीकरण आदि कार्य करने चाहिए। (हेमचन्द्र, योगशास्त्र ५/३८-५२) । लघुविद्यानुवाद में अचार्य कुन्थुसागर जी ने निम्न मंडलों के चित्र दिये हैं। ये मंडल वे ही हैं जो अन्य तांत्रिक साधना में भी पाये जाते हैं। ऐसा लगता है कि मंडलों की यह अवधारणा जैनों ने अन्य तांत्रिक साधना पद्धति से ही ग्रहण की है क्योंकि मंडलों में ऐसा कुछ भी नहीं हैं जिससे उनमें जैन परम्परा की कोई विशिष्टता परिलक्षित होती हो। पाठकों की जानकारी के लिये लघुविद्यानुवाद के आधार पर वे मंडल नीचे दिये जा रहे हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy