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________________ ३२४ तान्त्रिक साधना के विधि-विधान यहां हम यह देखते हैं कि विद्यानुशासन में जो अङ्गन्यास की विधि दी गई है वह सिंहनन्दि द्वारा दी गई विधि से कुछ भिन्न है। जहां उसमें णमो अरहंताणं का न्यास हृदय पर करने का उल्लेख है वहां इसमें णमो अरहंताणं का न्यास सिर पर किया जाता है। सिंहनन्दि ने अङ्गन्यास के अतिरिक्त वज्रपञ्जर का भी उल्लेख किया है और कहा है कि विपरीत कार्यों में अङ्गन्यास से और शोभनकार्य में वज्रपञ्जर से आत्मरक्षा करनी चाहि। इससे यह सिद्ध होता है कि मान्त्रिक दृष्टि से अन्यास और वजपजर भिन्न-भिन्न हैं, यद्यपि प्रयोजन की दृष्टि से दोनों में समानता है। सिंहनन्दि के अनुसार वज्रपञ्जर करने की विधि इस प्रकार है'ॐ' हृदि । 'हाँ' मुखे। ‘णमो' नाभौ । 'अरि वामे। 'हंता' वामे। 'ताणं' शिरसि । 'ॐ' दक्षिणे बाहौ । 'ही' वामे बाहौ । णमो' कवचम् । 'सिद्धाणं' अस्राय फट् स्वाहा। इसी ग्रन्थ में रक्षामन्त्र के रूप में जो आत्मरक्षा की विधि दी गई है उसमें पदों के अङ्गन्यास का क्रम और भी भिन्न है। इसमें पंचपदों के अतिरिक्त एसोपंचनमोक्कारो आदि चूलिका के पदों को भी स्थान दिया गया है। उनके द्वारा प्रस्तुत रक्षामन्त्र निम्न है रक्षामन्त्रः 'ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं पादौ रक्ष रक्ष ।' 'ॐ ह्रीं नमो सिद्धाणं कटिं रक्ष रक्ष ।' 'ॐ ह्रीं नमो आयरियाणं नाभिं रक्ष रक्ष।' 'ॐ ह्रीं नमो उवज्झायाणं हृदयं रक्ष रक्ष ।' 'ॐ ह्रीं नमो लोए सव्वसाहूणं कण्ठं रक्ष रक्ष ।' 'ॐ ह्रीं एसो पंच नमोक्कारो (णमोकारो) शिखां रक्ष रक्ष ।' 'ॐ ह्री सव्वपावप्पणासणो आसनं रक्ष रक्ष ।' 'ॐ ह्री मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं होइ मंगलं आत्मवक्षः परवक्षः रक्ष रक्ष ।' इति रक्षामन्त्रः ।। 'नमस्कारस्वाध्याय' के अन्तर्गत आज्ञतकृत 'आत्मरक्षानमस्कार स्तोत्र' में नमस्कार मंत्र के विभिन्न पदों की शिरस्त्राण कवच, आयुध, मोचक, (पादत्राण) दुर्ग, परिधा (खातिका) आदि के रूप में कल्पना की गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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