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________________ ३०५ जैनधर्म और तांत्रिक साधना कुण्डलिनी के जागरण से ही चक्रों का भेदन होता है और उसके माध्यम से व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास का द्वार खुलता है। तन्त्रसाधना में कुण्डलिनी शिवसंहिता में कुण्डलिनी का स्वरूप निम्न रूप में प्रतिपादित हैमनुष्य मात्र के मेरुदण्ड के उभयपार्श्व में इड़ा और पिङ्गला नामक दो नाड़ियाँ हैं। इन दोनों के मध्य में अति सूक्ष्म एक तीसरी नाड़ी है, जिसका नाम सुषुम्ना है । गुदा और लिङ्ग के बीच में निम्नाभिमुख एक योनिमण्डल है, जिसको कन्दस्थान भी कहा जाता है । उसी कन्दस्थान में कुण्डलिनी शक्ति समस्त नाड़ियों को वेष्टित करती हुई, साढ़े तीन ऑटे देकर अपनी पूँछ मुख में लिये सुषुम्ना नाड़ी के छिद्र का अवरोध करती हुई सर्प के सदृश स्थित है । सर्पतुल्या यह कुण्डलिनी शक्ति सर्प के समान सन्धिस्थान में निवास करती है। तन्त्र साधना में कुण्डलिनी को शिव की शक्ति माना गया है। यह सत्त्व, रज तथा तम तीनों गुणों की धात्री भी है । कन्द के ऊपरी भाग में कुण्डलिनी शक्ति सुषुप्त अवस्था में रहती है, किन्तु जो योगी इसको जाग्रत कर पाता है, वह मोक्ष का अधिकारी बन जाता है और जो मूढ़ ऐसा नहीं कर पाते हैं, उनके लिए वह बन्धन का कारण होती है । जो व्यक्ति कुण्डलिनी - शक्ति को जगाने की युक्ति जाता है, वही यथार्थ में योग का ज्ञाता है। जो पुरुष इस प्राणशक्ति को दशम द्वार (सहस्रार) में ले जाना चाहता है, उसके लिए उचित है कि वह एकाग्रचित्त होकर युक्तिपूर्वक इस शक्ति को जागृत करे। गुरु कृपा से जब निद्रिता कुण्डलिनी शक्ति जग जाती है तब वह मूलाधार आदि षटचक्रों में स्थित पद्मों या ग्रन्थियों का भेदन करती हुई सहस्रार में जाकर परमात्म स्वरुप को प्राप्त कर लेती है। इसलिए साधक को प्रयत्नपूर्वक ब्रह्म रन्ध्र के मुख में स्थित उस निद्रिता परमेश्वरी कुण्डलिनी शक्ति को प्रबोधित करने के लिए प्राणायाम, मुद्रा आदि का विधिपूर्वक अभ्यास करना चाहिए। प्राणायाम, मुद्राओं तथा भावनाओं द्वारा धीरे-धीरे कुण्डलिनीशक्ति जागृत होती है । 1 जैन साधना और कुण्डलिनी जागरण जहाँ तक जैनसाधना का प्रश्न है उसमें कुण्डलिनी को जागृत करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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