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________________ २९८ ध्यान एवं योग संबंधी शोध कार्य ध्यान साधना और जैनधर्म इस युग में गवेषणात्मक दृष्टि से योग और ध्यान संबंधी साहित्य को लेकर पर्याप्त शोधकार्य हुआ है। जहां भारतीय योग साधना और पतञ्जलि के योगसूत्र पर पर्याप्त कार्य हुए हैं, वहीं जैनयोग की ओर भी विद्वानों का ध्यान आकर्षित हुआ है। ध्यानशतक, ध्यानस्तव, ज्ञानार्णव आदि ध्यान और योग संबंधी ग्रंथों की समालोचनात्मक भूमिका और हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशन इस दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रयत्न कहा जा सकता है । पुनः हरिभद्र के योग संबंधी ग्रंथों का स्वतंत्ररूप से योगचतुष्टय के रूप में प्रकाशन इस कड़ी का एक अगला चरण है। पं० सुखलालजी का 'समदर्शी हरिभद्र, अर्हदास बंडोबा दिघे का पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान से प्रकाशित 'जैन योग का आलोचनात्मक अध्ययन', मंगला सांड का 'भारतीय योग' आदि गवेषाणात्मक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण प्रकाशन कहे जा सकते हैं। अंग्रेजी भाषा में विलियम जेम्स का 'जैन योग', डॉ० नथमल टाटिया की 'Studies in Jaina Philosophy', पद्मनाभ जैनी का 'Jain Path of Purification' आदि भी इस क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण कृतियां हैं। जैन ध्यान और योग को लेकर लिखी गई मुनिश्री नथमलजी (आचार्य महाप्रज्ञ) की 'जैन योग' 'चेतना का ऊर्ध्वारोहण', 'किसने कहा मन चंचल हैं, 'आभामण्डल' आदि तथा आचार्य तुलसी की प्रेक्षा- अनुप्रेक्षा आदि कृतियां इस दृष्टि से अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण हैं । उनमें पाश्चात्य मनोविज्ञान और शरीर-विज्ञान का तथा भारतीय हठयोग आदि की पद्धतियों का एक सुव्यवस्थित समन्वय हुआ है। उन्होंने हठयोग के षट्चक्र की अवधारणा को भी अपने ढंग से समन्वित किया है। उनकी ये कृतियां जैन योग और ध्यान साधना के लिए अवश्य मील का पत्थर साबित होंगी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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