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________________ २१९ जैन धर्म और तांत्रिक साधना जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश में संगृहीत ये यन्त्र मुख्यतः पूजायन्त्र हैं। इन यन्त्रों को हम ऐतिहासिक विकासक्रम एवं तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से मुख्यतया तीन भागों में वर्गीकृत कर सकते हैं- प्रथम भाग में वे यन्त्र आते हैं जो मुख्यरूप से जैन परम्परा की धार्मिक एवं दार्शनिक मान्यताओं पर आधारित हैं और जिनके पूजा आदि का प्रयोजन भी व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास ही माना गया है। ऐसे यन्त्रों में अर्हनमंडल यन्त्र (३); कर्मदहन यन्त्र (५); गणधरवलय यन्त्र (११); चौबीसी मंडल यन्त्र (१४); दशलाक्षणिक धर्मचक्रोद्धार यन्त्र (१८) निर्वाणसम्पत्ति यंत्र (२०) पूजा यन्त्र (२२); मोक्षमार्ग यन्त्र (२७); रत्नत्रयचक्रयन्त्र (२६); रत्नत्रयविधान यन्त्र (३०); विनायक यन्त्र (३६); शांतिविधान यन्त्र (३६) षोडशकरणधर्मचक्रोद्धार यन्त्र (४०); सरस्वती (जिनवाणी) यन्त्र (४१); सिद्धचक्र यन्त्र (लघु) (४५); सिद्धचक्र यन्त्र (बृहद्) (४६) आदि मुख्य हैं। यद्यपि इन यन्त्रों में कहीं-कहीं बीजाक्षरों और मातृकापदों का भी उल्लेख हुआ है फिर भी इनमें जो उपास्य देवता हैं वे जैनपरम्परा के पञ्चपरमेष्ठि, चौबीस तीर्थंकर आदि ही हैं। गणधरवलय यन्त्र में जिन अड़तालीस लब्धिधारियों का उल्लेख है वे भी जैन आगम सम्मत हैं। इसी प्रकार इन यन्त्रों में आत्मा के अष्टगुण, दशधर्म, रत्नत्रय, मोक्षमार्ग के चार अंग, बारह व्रत आदि का भी निर्देश किया गया है। सरस्वती या जिनवाणी यन्त्र में मुख्यरूप से आगमधरों तथा आगमों का उल्लेख हुआ है। जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश में संगृहीत यन्त्रों का दूसरा वर्ग वह है जिसमें अष्ट लोकपालों या दिक्पालों, अष्टदेवियों, सोलह विद्यादेवियों, चौबीस यक्षों एवं यक्षियों, जैन देव मण्डल में स्वीकृत देव-देवियों के नामोल्लेख पाये जाते हैं। ऐसे यन्त्रों में अंकुरार्पण यन्त्र (१) ऋषिमंडल यन्त्र (४) कुल यन्त्र (८): पीठ यन्त्र (२१); शांतिचक्रयन्त्रोद्धार (३८); सारस्वत यन्त्र (४४) प्रमुख हैं। जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश में संगृहीत यन्त्रों का तीसरा वर्ग, ऐसे यन्त्रों से सम्बन्धित है, जिनमें प्रमुखरूप से बीजाक्षरों का निर्देश किया गया है। ऐसे यन्त्रों में अग्निमण्डल यन्त्र (२); कलिकुण्डदण्ड यन्त्र (६); कल्याणत्रैलोक्यसार यन्त्र (७); कूर्मचक्र यंत्र (६); गन्ध यन्त्र (१०); घटस्थानोपयोगी यन्त्र (१२); चिन्तामणि यन्त्र (१३); जलमण्डल यन्त्र (१५); नयनोन्मीलन यन्त्र (१६); मातृका यन्त्र (२४); मृत्तिकानयन यन्त्र (२५); मृत्युञ्जय यन्त्र (२६); यन्त्रेश यन्त्र (२८); रुक्मपत्रांकित वरुण यन्त्र (३२): रुक्मपत्रांकित व्रजमण्डल यन्त्र (३३) वश्य यन्त्र (३५); लघुसिद्धचक्र यन्त्र (४५) (इस यंत्र में पञ्चपरमेष्ठि के साथ-साथ मातृकापदों का उल्लेख है); Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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