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________________ १७२ जैनधर्म और तांत्रिक साधना रुद्राक्ष की माला से जप करना चाहिए। जप करते समय माला को हृदय के समीप किन्तु शरीर, परिधान और स्थल से विलग रखकर मेरु का उल्लंघन नहीं करते हुए जपना चाहिए। मात्र यही नहीं उसमें यह भी बताया गया है कि जो अंगुली के अग्रभाग से माला जपता है अथवा जो जप में माला के मेरु का उल्लंघन करता है अथवा जो व्यग्रचित्त से माला जपता है उसे अल्प फल ही प्राप्त होता है। उसी क्रम में उसमें यह भी बताया गया है कि सशब्द जप की अपेक्षा मौन जप और मौन जप की अपेक्षा मानस जप श्रेष्ठ है। इसकी चर्चा हमने जप के प्रकारों में की है बन्धनादिकष्टे तु विपरीतशावर्त्तदिनाक्षरैः पदैर्वा विपरीतं नमस्कार लक्षाद्यपि जपेत्, क्षिप्रं ल्केशनाशादि स्यात् । करजापाद्यशक्तस्तु सूत्ररत्नरुद्राक्षादिजपमालया स्वहृदयसमश्रेणिस्थया परिधानवस्त्रचरणादावलगन्त्या मेर्वनुल्लङ्घनादिविधिना जपेत् यतः "अगुल्यग्रेण यज्जप्तं, यज्जप्तं मेरुलङ्घने। व्यग्रचित्तेन यज्जप्तं, तत्प्रायोऽल्पफलं भवेत् ।।१।। सकुलाद्विजने भव्यः, सशब्दान्मौनवान् शुभः । मौनजान्मानसः श्रेष्ठो, जापः श्लाघ्यः परः परः ।।२।। यह सत्य है कि मन को एकाग्र करने में और भावों की विशुद्धि हेतु माला आसन, आदि स्थान का अपना महत्त्व है। फिर भी इनके भेद से जप के फल में इतना अंतर मानना युक्तिसंगत नहीं लगता है। मालाजप के विविधरूप नमस्कार मंत्र के किसी एक पद की अर्थात् सम्पूर्ण नमस्कार मंत्र की माला जपने की परम्परा प्रचलन में आयी। नमस्कार मंत्र के पांच पदों में ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप ऐसे चार पदों को जोड़कर नवपदों की माला का प्रचलन हुआ । तीर्थंकरों में से किसी तीर्थंकर विशेष के नाम की माला फेरने की परम्परा भी प्राचीन काल से लेकर आज तक जीवित है। साधक के लौकिक प्रयोजन विशेष के आधार पर किसी तीर्थंकर विशेष के नाम की माला फेरने का निर्देश जैन परम्परा के ग्रंथों में मिलता है। लौकिक प्रयोजनों को लेकर चक्रेश्वरी, अम्बिका, पद्यमावती आदि देवियों, मणिभद्र आदि यक्षों और नाकोड़ा आदि भैरवों की माला भी जपी जाती है। मंत्र-जप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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