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________________ १७० जैनधर्म और तांत्रिक साधना |३|४५|२|१ مر مر ه ها سه आनुपूर्वी जप विधि जहाँ १ है, वहाँ 'नमो अरिहन्ताणं' का उच्चारण करे। जहाँ है, वहाँ 'नमो सिद्धाणं' का उच्चारण करे। जहाँ है, वहाँ 'नमो आयरियाणं' का उच्चारण करे। जहाँ है, वहाँ ' नमो उवज्झायाणं' का उच्चारण करे। जहाँ है, वहां 'नमो लोएसव्वसाहूणं' का उच्चारण करे। आनुपूर्वी जप का फल आनुपूर्वी प्रतिदिन जपिये! चंचल मन स्थिर हो जावे। छह मासी तप का फल होवे, पाप पंक सब घुल जावे। मन्त्रराज नवकार हृदय में शान्ति सुधारस बरसाता। लौकिक जीवन सुखमय करके अजर अमर पद पहुँचाता। जिनवाणी का सार है, मन्त्र राज नवकार । भाव सहित जपिये सदा यही जैन आचार ।।। आनुपूर्वी की संख्यात्मक तालिकाएं अग्रिम पृष्ठों में दी जा रही हैंजप में आसन-विधान जप किस वस्तु के आसन पर बैठकर किया जाये इसके भी कुछ विधि-विधान हैं। बांस की चटाई पर बैठकर जप करने से दारिद्र्य प्राप्त होता है, शिला पर बैठकर जप करने से व्याधि हो सकती है। भूमि पर जप करने से दुःख प्राप्त होता है। लकड़ी के पाट पर बैठकर जप करने से दुर्भाग्य की प्राप्ति होती है। घास की चटाई पर बैठकर जप करने से अयश प्राप्त होता है। पत्तों के आसन पर बैठकर जप करने से व्यक्ति भ्रमित हो सकता है। कथरी पर बैठकर जप करने से मन चंचल होता है। चमड़े के आसन पर बैठकर जप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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