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________________ १०३ मंत्र साधना और जैनधर्म (६२) दाहशान्तिमन्त्र 'ॐ नमो ॐ अर्ह अ सि आ उ सा नमो अरहंताणं नमः। हृदयकमले १०८ जपादुपवासफलम् । एतेन जलेन पानीयं मन्त्रितं कृत्वाऽग्ने दावानलस्याग्रे रेखां दद्याद् दाहशान्तिर्भवति।। इस मंत्र से अभिमंत्रित जल का पान करके अग्नि अथवा दावानल के आगे एक रेखा खींचने से दाह शान्त हो जाता है। (६३) सर्वत्रजयार्थकमन्त्र 'ॐ ह्रीं अहँ असिआउसा अनाहतविज्जा (घा) यै अहँ नमः। प्रतिदिन त्रिकालमष्टोत्तर (शत) जपः, सर्वत्र जयो भवति। इस मंत्र की १०८ आवृत्ति करने से सर्वत्र विजय प्राप्त होती है। (६४) सर्पभयनाशनमन्त्र 'ॐ नमो सिद्धाणं पंचेणं पंचेणं ।' एतेन दीपरात्रिदिने गुणिते यावज्जीवं सर्पभयं (यो) नो भवेत्। इस मंत्र का जप करने से सर्पभय नष्ट हो जाता है। (६५) सर्पभयनाशनमन्त्र ___ 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं क्रौं ब्लु अहँ नमः। इदं मन्त्र जपतः सर्वकार्याणि साधयति । इस मंत्र को जपने से सब कार्य सिद्ध होते हैं। (६६) सर्वकार्यसिद्धमन्त्र 'ॐ ह्रीं श्रीं अमुकं दुष्टं साधय साधय असिआउसा नमः । दिनानामेकविंशत्या, जपन्नष्टोत्तरं शतम् । यं शत्रु च समुद्दिश्य, करोति पां......तरेः (?)।। जिस शत्रु को लक्ष्य बनाकर २१ दिन तक १०८ बार जप किया जाता है उसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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