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vii उपलब्ध जैन मंत्र-तंत्र साहित्य में नवकार सार श्रवणं, णमोकार मंत्र महात्म्य, नमस्कार कल्प, नमस्कार स्तव (जिनकीर्तिसूरि), पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, बीज कोश
और बीज व्याकरण, मंत्रराज रहस्य (सिंहतिलक सूरि). विद्यानुशासन (कुमारसेन), मंत्रराज (महेन्द्र सूरि) दसवीं-ग्यारहवीं सदी के अनेक प्रतिष्ठापाठ एवं कथा ग्रन्थ समाहित हैं। ग्यारहवीं सदी के अज्ञातकर्तृक "यंत्र-मंत्र-संग्रह", "मंत्रशास्त्र' एवं "भैरव-पद्मावतीकल्प (मल्लिषेण)" का उल्लेख भी अनेक लेखकों ने किया है। ज्ञानार्णव एवं धवला में मंत्रों के विवरण हैं। वर्तमान में कुछ विद्वानों ने हिन्दी और अंग्रेजी में ध्वनि विज्ञान के आधार पर मंत्रों या जैन मंत्रों की वैज्ञानिक दृष्टि से प्रभावक व्याख्या की है। इनमें नवाब की "महाप्रभाविक नमस्कार स्मरण', नेमचन्द्र शास्त्री की “णमोकारमंत्र- एक अनुचिंतन", आर०के० जैन की “साईंटिफिक ट्रीटाइज ऑन णमोकार मंत्र", श्री सुशील मुनि की "सोंग आफ दि सोल'' पुस्तकें महत्त्पूर्ण हैं। आजकल जैनों में जो 'विद्यानुवाद' उपलब्ध है, उसकी प्रामाणिकता चर्चा का विषय है। अब तो "लघु विद्यानुवाद" और "मंत्रानुशासन" भी सामने आये हैं। इनमें जैनेतर-तंत्रों का प्रभाव स्पष्ट है। जैन समाज में इन ग्रन्थों की कड़ी आलोचना हुई है। जैनों के एक प्रमुख स्वर्गवासी आचार्य ने भी शास्त्रों के आधार पर मंत्र-तंत्रों के प्रभाव से अनेक दुःखितों की रक्षा की ऐसा जनसाधारण का विश्वास है पर उनकी भी समाज में आलोचना हुई थी। लेकिन इससे मंत्र-तंत्र शास्त्र की प्रभावकता की कोई विशेष हानि नहीं हुई। यह तंत्रवाद का ही प्रभाव है कि जैनों में अनेक प्रकार के देव, देवी, नवग्रह, घंटाकर्ण, पदमावती, क्षेत्रपाल एवं सप्तऋषि आदि की पूजायें एवं अर्घ्य प्रचलित हैं। संभवतः इसका कारण सगुण भक्तिवाद की सरलता एवं मनोवैज्ञानिकता है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना चाहिये कि जैनों का मंत्र-तंत्रवाद वामाचार और कौलाचार को सर्वथा अमान्य करता है और केवल उन विधि-विधानों को स्वीकार करता है जिनमें धार्मिकता एवं सामाजिकता की दृष्टि से अवांछनीय पंच-मकार के समान अनुष्ठान नहीं किये जाते। इस संदर्भ में जैनों का तंत्रवाद अन्य तंत्रों की तुलना में पर्याप्त रूप से सतर्क रहा है। यद्यपि प्रो० सागरमल जैन ने प्रस्तुत कृति में जैन आचार्यों द्वारा अनुमोदित मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन आदि के कुछ मंत्रों का विवरण प्रस्तुत किया है। मंत्र, यंत्र और तंत्र शब्दों के अर्थ
"मंत्र" शब्द को छोड़कर "यंत्र" और "तंत्र" शब्द के सामान्य अर्थ ही जैन ग्रन्थों में पाये जाते हैं। "यंत्र" का अर्थ यांत्रिक युक्ति या पीड़न-युक्ति आदि है और "तंत्र" का अर्थ सिद्धान्त, विशिष्ट विद्या या कायिकी क्रिया आदि है। यह देखा गया है कि शब्दकोशों या विश्वकोषों में "मंत्र" और "यंत्र" शब्दों
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