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________________ तृतीय अध्याय अर्थ-( मणिविचित्रपार्थाः ) कई तरहकी मणियोंसे चित्रविचित्र तटोंसे युक्त ( उपरि मूले च) उपर नीचे और मध्यमें (तुल्यविस्ताराः) एकसमान विस्तारवाले हैं ॥१३॥ कुलाचलोंपर स्थित सरोवरोंके नाम पद्ममहापद्मतिगिञ्छकेशरिमहापुण्डरीक पुण्डरीका ह्रदास्तेषामुपरि ॥१४॥ अर्थ- ( तेषाम् उपरि ) उन पर्वतोंके ऊपर क्रमसे ( पद्म-महापद्म तिगिञ्छ केशरि महापुण्डरीक और पुण्डरीक ह्रदाः) पद्म, महापद्म तिगिञ्छ, केशरिन, महापुण्डरीक और पुण्डरीक नामके ह्रद-सरोवर हैं । १४॥ प्रथम सरोवरकी लंबाई चौडाई प्रथमो योजनसहस्त्रयामस्तदर्द्धविष्कम्भो हृदः। अर्थ- ( प्रथमह्रदः ) पहला सरोवर ( योजनसहस्त्रायामः) एक हजार योजन लम्बा और तदद्धविष्कम्भः) लम्बाईसे आधा अर्थात् पांचसौ योजन विस्तारवाला है ॥१५॥ प्रथम सरोवर की गहराईदशयोजनावगाहः ॥१६॥ अर्थ- पहला सरोवर दशयोजन गहरा है ॥ १६ ॥ उसके मध्यमें क्या है ? तन्मध्ये योजनं पुष्करम् ॥१७॥ अर्थ- उसके बीचमें एक योजन विस्तारवाला कमल है। ७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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