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द्वितीय अध्याय
दर्शनोपयोगके भेदसे दो प्रकारका है। फिर क्रमसे (अष्टचतुभेदः ) आठ और चार भेदसे सहित है, अर्थात् ज्ञानोपयोगके मति श्रुत अवधि मन:पर्यय और केवलज्ञान तथा कुमति कुश्रुत और कुअवधि ये आठ भेद हैं। एवं दर्शनोपयोगके चक्षुर्दर्शन अचक्षुर्दर्शन अवधिदर्शन और केवलदर्शन ये चार भेद हैं। इस प्रकार दोनों भेदोंके मिलानेसे उपयोगके बारह भेद हो जाते हैं ॥ ९ ॥
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जीवके भेद
संसारिणो मुक्ताश्च ॥१०॥
अर्थ- वे जीव (संसारिण: ) संसारी (च) और (मुक्ता: ) मुक्त इस प्रकार दो भेदवाले हैं। कर्म सहित जीवोंको संसारी और कर्मरहित जीवोंको मुक्त कहते हैं ॥ १० ॥
संसारी जीवोंके भेद
समनस्काऽमनस्काः ॥ ११ ॥
अर्थ- संसारी जीव समनस्क - सैनी और अमनस्क असैनीके भेदसे दो प्रकारके होते हैं।
समनस्क - मनसहित जीव ।
अमनस्क - मनरहित जीव ॥ ११ ॥
संसारी जीवोंके अन्य प्रकारसे भेद संसारिणस्त्रसस्थावराः ॥ १२ ॥
3. ज्ञानोपयोग पदार्थको विकल्प सहित जानना है और दर्शनोपयोग विकल्परहित जानता है । 4. एकेन्द्रियसे लेकर चतुरिन्द्रिय तक जीव नियमसे असैनी होते है । तिर्यंच पंचेन्द्रियोंमें सैनी असैनी दोनों होते है। शेष तीन गतियोंके जीव नियमसे सैनी ही होते
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