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________________ मोक्षशास्त्र सटीक इसके दो भेद हैं-१-द्रव्यार्थिक, २-पर्यायार्थिक । जो मुख्यरूपसे द्रव्यको विषय करे उसे द्रव्यार्थिक और जो मुख्य रूपसे पर्यायको विषय करे उसे पर्यायार्थिक नय कहते हैं ' ॥६॥ निर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरणस्थितिविधानतः अर्थ-निर्देश, स्वामित्व, साधन, अधिकरण, स्थिति और विधान इनसे भी जीवादिक तत्व तथा सम्यग्दर्शन आदिका व्यवहार होता हैं। निर्देश- वस्तुके स्वरूपका कथन करना सो निर्देश है। स्वामित्व- वस्तुके अधिकारको स्वामित्व कहते हैं। साधन- वस्तुकी उत्पत्तिके कारणको साधन कहते हैं। अधिकरण- वस्तुके आधारको अधिकरण कहते हैं। स्थिति- वस्तुके कालकी अवधिको स्थिति कहते हैं। विधान- वस्तुके भेदोंको विधान कहते हैं ॥७॥' 1. इन अवान्तर भेदोंकी विवक्षासे ही सूत्रमें द्विवचनके स्थान पर बहुवचनका प्रयोग किया गया है। 2. ऊपर कहे हुए छह अनुयोगोंसे सम्यग्दर्शनका वर्णन इस प्रकार है। निर्देश- जीव आदि तत्वोंका यथार्थ श्रद्धान करना। स्वामित्व- संज्ञी. पञ्चेन्द्रिय, पर्याप्तक भव्य जीव। साधन-साधनके दो भेद है। १. अन्तरङ्ग और २. बाह्य । दर्शनमोहके उपशम क्षय अथवा क्षयोपशमको अन्तरंग साधन कहते है. यह सबके एकसा होता है। बाह्य साधन कई प्रकारका होता है। जैसे नरक गतिमें तीसरे नरक तक ' जाति स्मरण ' — धर्मश्रवण' और ' दुखानुभव ' ये तीन तथा चौथेसे सातवें तक' जातिस्मरण ' और ' दुखानुभव ' ये दो साधन है । तियञ्च और मनुष्यगतिमें ' जातिस्मरण '' धर्मश्रवण' और जिनबिम्ब-दर्शन ' ये तीन साधन है। देवगतिमें बारहवें स्वर्गके पहले ' जातिस्मरण' 'धर्मश्रवण', 'जिनकल्याणक दर्शन ' और ' देवद्धिदर्शन ' ये चार उसके आगे सोलहवें स्वर्ग तक 'देवद्धिदर्शन' को छोड़कर तीन तथा नवग्रैवेयकोंमें 'जातिस्मरण ' और धर्मश्रवण ' ये दो साधन है । इसके आगे सम्यग्द्दष्टि जीव ही उत्पन्न होते है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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