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भाषानुवाद सहित । षद्रव्यसप्त- तत्वस्वरूप वर्णनात्मक उत्तम ग्रन्थ चतुर्थावृत्ति । मू. ३८ )
पुरुषार्थसिद्धयुपाय -- श्री अमृतचंद्रसूरि कृत मूल श्लोक। पं. टोडरमलजी तथा पं. दौलतरामजीके टीकाके आधार पर स्व. पं. नाथूरामजी प्रेमी द्वारा लिखित नवीन हिन्दी टीका सहित । श्रावक - मुनिधर्मका चित्तस्पर्शी अद्भुत वर्णन । षष्ठावृत्ति, मू. २० )
अध्यात्म राजचंद-- श्रीमद् राजचंद्रके अद्भुत जीवन तथा साहित्यका शोध एवं अनुभवपूर्ण विवेचन डॉ. भगवानदास मनसुखभाई महेताने गुजराती भाषामें किया। मू. ६५ )
पंचास्तिकाय -- श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्य विरचित अनुपम ग्रंथराज | आ. अमृतचंद्रसूरिकृत समयव्याख्या एवं आ. जयसेनकृत तात्पर्यवृत्ति - नामक संस्कृत टीकाओंसे अलंकृत और पांडे हेमराजजी रचित बालवबोधिनी भाषा टीकाके आधारपर पं. पन्नालालजी बाकलीवाल कृत प्रचलित हिन्दी अनुवाद सहित । चतुर्थावृत्ति, मू. ४० )
अष्टप्राभृत-- श्रीमद्कुन्दकुन्दाचार्य विरचित मूल गाथाओं पर श्री रावजीभाई देसाई द्वारा गुजराती गद्य-पद्यात्मक भाषांतर मोक्षमार्गकी अनुपम भेंट | मू. २० ) भावनाबोध - मोक्षमाला -- श्रीमद् राजचंद्र कृत, वैराग्यभावना सहित जैनधर्मकी यथार्थ स्वरूप दिखानेवाले १०८ सुन्दर पाठ है । मू. २० ) गुजराती मू. २० )
स्याद्वादमंजरी -- श्री मल्लिषेणसूरि कृत मूल और श्री जगदीशचंद्र शास्त्री एम. ए. पीएच. डी. कृत हिन्दी अनुवाद सहित न्यायका अपूर्व ग्रन्थ है। बड़ी खोजसे लिखे गये ८ परिशिष्ट है : मू. ६० )
इष्टोपदेश -- श्री पूज्यपाद देवनन्दि अ. कृत मूल श्लोक, पंडितप्रवर आशाधर कृत संस्कृत टीका, पं. धन्यकुमारजी जैन दर्शनाचार्य एम. ए. कृत हिंदी टीका, स्व. बैरिस्टर चम्पतरायजी कृत अंग्रेजी टीका तथा विभिन्न विद्वानों द्वारा रचित हिंदी, मराठी, गुजराती एवं अंग्रेजी पद्यानुवाद सहित
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