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[२ ] प्रकाशकीय निवेदन
जैनसमाजको यह बतानेकी आवश्यकता नहीं हैं कि मोक्षशास्त्र (तत्त्वार्थसूत्रजी) कितना महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। तत्वार्थसूत्र पर बीसों छोटी बड़ी टिकाएँ हुई हैं, और इसीके आधारपर कई ग्रंथ लिखे गये हैं-सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक, श्लोकवार्तिक, अर्थप्रकाशिका आदि ग्रन्थ इसीकी टीकाएं हैं। इस मोक्षशास्त्रको बालकोंसे लेकर महा पंडित तक पढ़ते हैं। बहुत समयसे ईसकी बालकोपयोगी टीकाकी आवश्यक्ता थी, अतः सर्वप्रथम स्व. पं. पन्नालालजी बाकलीवालने इसकी बालबोधिनी टीका की। इसके बाद भी १-२ टीकाएं और प्रकट हुईं, मगर वे बहुत अपूर्ण थी।
इसलिये हमारे अनुरोधसे साहित्यचार्य पं. पन्नालालजी जैन 'बसन्त' सागरने यह सुबोध सरल एवं सर्वांग-सुन्दर टीका तैयार की। यह टीका इतनी उत्तम सिद्ध हुई है कि अल्प समयमें ही इसकी दश आवृतियाँ समाप्त हो गई। अतः इस अपार मंहगाईमें भी हम इसकी ग्यारहवीं आवृति प्रकट कर रहे हैं।
तीसरी आवृतिसे इसमें श्री पं. फूलचन्दजी जैन सिद्धान्त शास्त्री वाराणसीकृत ५६ प्रश्रोत्तर जोड़ दिये गये थे जो इस आवृति में भी प्रकट किये गये हैं, जिससे छात्रों व स्वाध्याय-प्रेमियोंको तत्त्वार्थसूत्रके गहन विषयोंका ज्ञान हो सकेगा।
चित्र, नक्से, चार्ट, नोट, प्रश्नोत्तर, तत्त्वार्थसूत्र मूल, लक्षणसंग्रह, विषयसूची, तीन परीक्षालयोंके प्रश्रपत्र एवं कम्प्युटर टाईप सेटिंग और
ओफसेट प्रिन्टींग आदिसे यह ग्यारहवीं आवृति ऐसी सर्वांग सुन्दर बनाई गई है कि यह ग्रन्थ छात्रोंके समझने में बहुत सुलभ हो जायगा और इन्हें ध्यानसे समझनेवाले छात्र कभी अनुत्तीर्ण नहीं हो सकेंगे।
इस ग्रन्थके विद्वान टीकाकर श्री पं. पन्नालालजी साहित्याचार्य जैन "बसंत" सागर तथा प्रश्नोत्तर तैयार करनेवाले श्री पं. फूलचन्दजी जैन सिद्धान्तशास्त्री बनारसने इसके निर्माणमें जो अथक परिश्रम किया है उसके लिये हम तथा जैन समाज आपकी चिरकाल तक अत्यन्त आभारी रहेगी। हर्ष है कि अब सभी दिगम्बर जैन शिक्षा-संस्थाओंमें यही टीका चालू हो गई हैं। .. वीर सं. २५२७
निवेदकसूरत
शैलेश डाह्याभाई कापड़िया, प्रकाशक
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