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________________ २२०] मोक्षशास्त्र सटीक काययोग है और आत्मामें जो इसको पैदा करनेकी शक्ति है वह भाव काययोग है। वचनवर्गणाओंका अवलम्बन व वचनलब्धिके रहते हुए वचनोच्चारणके सन्मुख हुए आत्माके जो आत्मप्रदेश परिस्पन्द होता है वह द्रव्यवचनयोग है और आत्मामें जो इसे पेदा करनेकी शक्ति है वह भाव वचनयोग है। मनोवर्गणाओंके आलम्बनसे मानस परिणामके सन्मुख आत्माके जो आत्मप्रदेश परिस्पन्द होता है वह द्रव्य मनोयोग है और आत्मामें जो इसे पैदा करनेकी शक्ति है वह भाव मनोयोग है। [३४] शंका-अजीवाधिकरणका रहस्य क्या है ? [३४] समाधान-आत्माके आस्रवरुप परिणामोंके होने में बाह्य चेतन और अचेतन पदार्थ निमित्त होते हैं। वहां अधिकरणसे इन्हींको ग्रहण किया है। जिससे आत्मा आस्रवके सन्मुख होता है वह अधिकरण कहलाता है। वह अधिकरण दो प्रकारका हैजीवाधिकरण और अजीवाधिकरण। जीवाधिकरणमें जीवकी सब प्रवृत्तियोंको ग्रहण किया है। मुख्यत: उन प्रवृत्तियों के एकसो आठ भेद हो सकते हैं जो "आद्यं संरम्भ " इत्यादि सूत्र द्वारा गिनाये ही हैं। अजीवाधिकरणमें हिंसादिके प्रयोजन जड़ पदार्थोको ग्रहण किया है। तात्पर्य यह है कि जिन-जिन बाह्य पदार्थोके निमित्तसे आत्माके आस्रवरुप परिणाम होते हैं या कर्मोका आस्रव होता है वे सब अधिकरणमें लिये जाते हैं। अब यदि वे चेतन होते हैं तो उनका ग्रहण जीवाधिकरणमें किया जाता है। और अचेतन होते है तो उनका ग्रहण अजीवाधिकरणमें किया जाता है। इस प्रकार अजीवाधिकरणसे उन जड़ पदार्थोका ग्रहण करना चाहिये जो निरन्तर आत्माके परिणामोंका मलिन करते रहते हैं जिससे कर्मोका आस्त्रव होता है। प्रकृतमें अजीवाधिकरणका यही रहस्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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