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शंका समाधान
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[ २५ ] शंका- आर्य म्लेच्छोंका विशद वर्णन क्या है ?
[२५] समाधान - जो स्वयं गुणवाले हैं और गुणवालोंकी संगति करते है वे आर्य कहलाते हैं, और शेष म्लेच्छ । आर्योंके मुख्यतः दो भेद है ऋद्धि प्राप्त और ऋद्धि रहित। आगममें जो बुद्धि आदि ऋद्धियां बतलाई हैं, तप आदिकसे वे जिनके उत्पन्न हो जाती हैं वे ऋद्धिप्राप्त आर्य हैं। तथा ऋद्धिरहित आर्य पांच प्रकारके बतलाये हैं।
क्षेत्रार्य, जात्यार्य, कर्मार्य, चरित्रार्य, और दर्शनार्य । काशी आदि देशोंमें पैदा हुए क्षेत्रार्य हैं। इक्ष्वाकु आदि जातियोंमें पैदा हुए जात्यार्य हैं। असि आदि षट्कर्मोसे आजीविका करनेवाले कर्मार्य हैं। ये तीन प्रकारके होते हैं- अविरति, श्रावक और मुनि, इनमें मुनि असि आदि कर्म नहीं करते। इसी प्रकार चरित्रार्य और दर्शनार्योका स्वरुप समझना चाहिए। जो हीन है, जिनमें कर्मादि षट्कर्म व्यवस्था नहीं पायी जाती वे म्लेच्छ कहलाते हैं। ये दो प्रकारके हैं- अन्तद्वीपज और कर्मभूमिज । लवण समुद्र और कालोदधि समुद्रके अन्तद्वीपोंमें जो निवास करते हैं ऐसे कुभोगभूमियों मनुष्य अन्तद्वपज म्लेच्छ कहलाते हैं। तथा कर्मभूमिमें पैदा हुए शक, यवनादिक कर्मभूमिज म्लेच्छ कहलाते है। लोकानुयोगके गन्थोंमें म्लेच्छ खण्डों में निवास करनेवाले मनुष्योंको भी म्लेच्छ बतलाया है । इस प्रकार म्लेच्छ मनुष्य तीन प्रकारके होते हैं।
चौथा अध्याय
[२६] शंका- अन्यत्र जो बारह स्वर्गोकी मान्यता है उसका प्रकृत मान्यतासे कैसे मेल बैठता है ?
[ २६ ] समाधान- इन्द्र आदि दस प्रकारके देवोंकी कल्पना होनेसे स्वर्गीको कल्प कहते हैं। अब जब इन्द्र आदि दस प्रकारके देवोंकी कल्पना है जिनमें, वे कल्प कहलाते हैं यह अर्थ मुख्य रुपसे विवक्षित हो जाता है तो कल्प सोलह प्राप्त होते हैं । किन्तु इन सोलह कल्पोंके
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