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________________ १९४] मोक्षशास्त्र सटीक कर्म यह नाम रखना नामकर्म है। स्थापना निक्षेपका व्यवहार प्रतिनिधिके स्थानमें होता है अतः तदाकार या अतदाकार वस्तुमें यह 'कर्म' इस प्रकारको स्थापना करना स्थापना कर्म है। द्रव्यकर्म के दो भेद है- आगम द्रव्यकर्म और नोआगम द्रव्यकर्म। जो कर्म विषयक शास्त्रका ज्ञाता है किन्तु वर्तमानमें उसके उपयोगसे रहित है उसे आगम द्रव्यकर्म कहते है। नोआगम द्रव्यकर्मके तीन भेद हैज्ञायकशरीर, भावी और तद्वयतिरिक्त । ज्ञायकशरीरमें कर्मविषयक शास्त्रके ज्ञाताका भूत, भविष्यत् और भावी इन तीनो प्रकारके शरीरका ग्रहण किया है। जो भविष्यत् कालमें कर्मविषयक शास्त्रका ज्ञाता होगा उसे भावी नोआगम द्रव्यकर्म कहते है। तद्वयतिरिक्तके दो भेद है-कर्मतद्वयतिरिक्त नोआगम द्रव्यकर्म और नोकर्मतद्वयतिरिक्त नोआगम द्रव्यकर्म ज्ञानावरणादि आठ कर्मोको कर्मतद्वयतिरिक्त नोआगम द्रव्यकर्म कहते हैं। और इन कर्मोके उदयमें जिसकी सहायता मिलती है उन सहकारी कारणोंको नोकर्मतद्वयतिरिक्त नोआगम द्रव्यकर्म कहते है। भावनिक्षेपके दो भेद है-आगम भावनिक्षेप और नोआगम भावनिक्षेप। इनमें से जो कर्मविषयक शास्त्रको जानता है और वर्तमानमें उसके उपयोगसे युक्त है उसे कर्म आगम भावनिक्षेप कहते है। तथा जो जीव कोके फलको भोग रहा है उसे कर्मनोआगम भावनिक्षेप कहते है। कर्म दो प्रकारके है-जीवविपाकी और पुद्गलविपाकी। पुद्गलविपाकी कर्मोका फल जीवमें नहीं होता इसलिये इन कर्मोका नोआगम भावनिक्षेप नहीं होता। किन्तु जीवविपाकी कर्मोका फल जीवमें होता है इसलिये इनका नोआगम भावनिक्षेप होता है। संसारी जीवके जितने भेद किये गये है नोआगम भावनिक्षेपकी अपेक्षा ही किये गये है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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