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________________ १९०] मोक्षशास्त्र सटीक (१) क्षयोपशमलब्धि-अशुभ कर्मोकी अनुभाग शक्तिके प्रति समय अनन्तगुणी हीन न होकर उदीरणाको प्राप्त होना क्षयोपशमलब्धि है। इससे उत्तरोत्तर परिणाम निर्मल होते जाते है। (२) जिन परिणामोंसे साता आदि प्रशस्त प्रकृतियोंका ही बन्ध होता है उसे विशुद्धलब्धि कहते है। प्रथम लब्धि इस लब्धिकी प्राप्तिमें कारण है। (३) छह द्रव्य और नौ पदार्थोके ज्ञाता गुरुके मिलने पर उनके द्वारा उपदेशे गये पदार्थके धारण करनेको देशनालब्धि कहते हैं। (४) आयुको छोड़कर शेष सब कर्मोकी स्थितिको अन्तः कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण कर देना और अशुभ कर्मोमेंसे घातिया कर्मोके अनुभागको लता और दारु इन दो स्थानगत तथा अघातिया कर्मोके अनुभागको नीम और कांजी इन दो स्थानगत कर देना प्रायोग्यलब्धि है। पहले हमने जितनी विशेषताएं बतलाई हैं उन सबका इन चार लब्धियोंमे अन्तर्भाव हो जाता है। पांचवी करणलब्धि है। करण का अर्थ परिणाम है। अर्थात् वे परिणाम जो नियमसे प्रथमोपशम सम्यग्दर्शनकी प्राप्तिमें कारण है उनकी प्राप्तिको करणलब्धि कहते है। यह लब्धि सम्यग्दर्शनको प्राप्त करनेवाले जीवके ही होती है। इसके तीन भेद है जिनका विस्तृत खुलासा लब्धिसारमें किया है। उपर्युक्त लब्धियों के साथ इस लब्धिके होनेपर नियमसे सम्यग्दर्शन होता है। संक्षेपके कारण यहां हमने प्रत्येक लब्धिगत विशेषताका वर्णन नहीं किया है। (२) क्षायोपशमिक सम्यक्त्वका दूसरा नाम वेदक सम्यक्त्व है इसे मिथ्याद्दष्टि और सम्यग्दष्टि दोनो उत्पन्न कर सकते है। मिथ्याद्दष्टियों में जो वेदककालके भीतर स्थित है, संज्ञी प्रर्याप्त और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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