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________________ दशम अध्याय [१७९ दशम अध्याय मोक्षतत्वका वर्णन केवलज्ञानकी उत्पत्तिका कारण ' मोहक्षयाज्ज्ञानदर्शनावरणान्तरायक्षयाच्चकेवलम्।१। अर्थ- मोहनीयकर्मका क्षय होनेसे अन्तर्मुहूर्तके लिये क्षीणकषाय नामक बारहवां गुणस्थान पाकर एकसाथ ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्मका क्षय होनेसे केवलज्ञान उत्पन्न होता है। . भावार्थ- चार घातिया कर्मोका सर्वथा क्षय हो जाने पर केवलज्ञान होता है। नोट-घातिया कर्मो में सबसे पहले मोहनीय कर्मका क्षय होता है, इसलिये सूत्रमें गौरव होनेपर भी उसका पृथक् निर्देश किया है।॥१॥ मोक्षके कारण और लक्षणबन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यां कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः ॥२॥ अर्थ- बन्धके कारणोंका अभाव तथा निर्जराके द्वारा ज्ञानावरणादि समस्त कर्मप्रकृतियोंका अत्यंत अभाव होना मोक्ष है। भावार्थ- आत्मासे समस्त कर्मोका सम्बन्ध छूट जाना मोक्ष है और वह संवर तथा निर्जराके द्वारा प्राप्त होता है।॥ २ ॥ मोक्षमें कर्मोके सिवाय और किसका अभाव होता है ? औपशमिकादिभव्यत्वानां च॥३॥ अर्थ- मुक्त जीवमें औपशमिक आदि भावोंका तथा पारिणामिक 1. मोक्ष केवलज्ञानपूर्वक होता है, इसलिये मोक्षके पहले केवलज्ञानकी उत्पत्तिका वर्णन किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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