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मोक्षशास्त्र सटीक दोनोंको करना), ४-विवेक(संयुक्त आहारपानीका तथा अन्य उपकरणोंका , नियमित समय तक पृथक् विभाग करना) व्युत्सर्ग ( कायोत्सर्ग करना ), तप ( उपवासादि करना), छेद ( एक दिन, एक पक्ष, महीना आदिकी दीक्षाका छेद करना' ), परिहार (दिन, पक्ष, महीना आदि नियमित समय तक संघसे पृथक् कर देना) और उपस्थापन (संपूर्ण दीक्षाका छेद कर फिरसे नवीन दीक्षा देना) ये ९ प्रायश्चित तपके भेद हैं। यह प्रायश्चित्त संघके आचार्य देते हैं ॥२२॥
विनय तपके ४ भेदज्ञानदर्शनचारित्रोपचाराः ॥२३॥
अर्थ- १ ज्ञान विनय ( आदरपूर्वक योग्यकालमें शास्त्र पढ़ना, अभ्यास करना आदि), २ दर्शन (शङ्का कांक्षाआदिदोषरहित सम्यग्दर्शन धारण करना), 3 चारित्रविनय( चारित्रको निर्दोष रीतिसे पालना ), और ४ उपचार विनय (आचार्य आदि पूज्य पुरुषोंको देखकर खड़े होना, नमस्कार करना आदि) ये चार विनय तपके भेद हैं॥२३॥
वैयावृत्य तपके १० भेदआचार्योपाध्यायतपस्विशैक्ष्यग्लानगणकुलसंघ
साधुमनोज्ञानाम् ॥ २४ ॥ अर्थ- आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शैक्ष्य, ग्लान, गण, कुल, संघ, मनोज्ञ, वैयावृत्य तप के दश भेद हैं।
2. बादमें दीक्षित हुए मुनि पहलेके दीक्षित मुनियोंको नमस्कार करते है, पर जितने समयकी दीक्षा छेद दी जाती है उसको उतने समयमें दीक्षित हए नये मनियोंको नमस्कारादि करना पड़ता है। जो मुनि पहले उनके शिष्य समझे जाते ये दीक्षा छेद होने पर वह मुनि उनका शिष्य कहलाने लगता है। संघ, साघु और मनोज्ञ इन १० प्रकारके मुनियोंकी सेवा टहल करना सो आचार्य, वैयावृत्य आदि १० प्रकारका वैयावृत्य है।
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