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मोक्षशास्त्र सटीक प्रायश्चितके द्वारा उसको दूर कर पुनः निर्दोष चारित्रको स्वीकार करना सो छेदोपस्थापना कहते है।
परिहारविशुद्धि- जिस चारित्रमें जीवोंकी हिंसाका त्याग हो जानेसे विशेष शुद्धि प्राप्त होती है उसको परिहारविशुद्धि चारित्र कहते हैं।
सूक्ष्मसाम्पराय- अत्यन्त सूक्ष्म लोभ कषायका उदय होनेपर जो चारित्र होता है उसे सूक्ष्मसाम्पराय चारित्र कहते हैं।
यथाख्यात- सम्पूर्ण मोहनीय कर्मके क्षय अथवा उपशमसे आत्माके शुद्ध स्वरुपमें स्थिर होनेको यथाख्यात चारित्र कहते हैं' ॥१८॥
निर्जरातत्त्वका वर्णन
बाह्य तपअनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्यागविविक्तशय्यासनकायक्लेशा बाह्यं तपः॥१९।
अर्थ- १-अनशन (संयमकी वृद्धिके लिये चार प्रकारके आहारका त्याग करना), २-अवमौदर्य (रागभाव दूर करनेके लिये भूखसे कम भोजन करना), ३-वृत्तिपरिसंख्यान (भिक्षाको जाते समय घर, गली आदिका नियम करना), ४-रसपरित्याग (इन्द्रियोंका दमन करनेके लिये घृत दुग्ध आदि रसोंका त्याग करना), ५-विविक्तशय्यासन (स्वाध्याय ध्यान आदिकी सिद्धिके लिये एकांत तथा पवित्र स्थानमें सोना बैठना)और६-कायक्लेश(शरीरसे ममत्व न रखकर आतापन योगआदि धारण करना), ये बाह्य तप हैं। ये तप बाह्य द्रव्योंकी अपेक्षा होते हैं तथा बाह्यमें सबके देखनेमें आते हैं इसलिये बाह्य तप कहे जाते हैं ॥१९॥ 1. सामायिक और छेदोपस्थापना ये दो चारित्र ६ - ७ - ८ वें ९ वें गुणस्थानमें होते है। परिहारविशुद्धि ६ वें और ७ वें सूक्ष्मसाम्पराय १० वें और यथाख्यात चारित्र ११ वें, १२ वें, १३ वें और १४ वें गुणस्थानमें होता है।
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