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________________ १४२] मानशास्त्र सटीक २. नामकर्म कहते हैं इसके पाँच भेद हैं- १. औदारिक बन्धन नामकर्म, वैक्रियिक बन्धन नामकर्म, ३- आहारक बन्धन नामकर्म, ४- तैजस बन्धन नामकर्म, और ५- कार्मण बन्धन नामकर्म। जिसके उदयसे औदारिक शरीरके परमाणु दीवालमें लगे हुए इंट और गारेकी तरह छिद्र सहित परस्पर सम्बन्धको प्राप्त हों वह औदारिक बंधन नामकर्म है। इसी प्रकार अन्य भेदोंका लक्षण जानना चाहिए। ७- संघात नामकर्म - जिस कर्मके उदयसे औदारिक आदि शरीरोके प्रदेशोंका छिद्ररहित बन्धन तो उसे संघात नामकर्म कहते है । इसके पांच भेद है- औदारिक, संघात आदि । ८- संस्थान नामकर्म- जिस कर्मके उदयसे शरीरका संस्थान अर्थात् आकार बने उसे संस्थान नामकर्म कहते है । इसके ६ भेद है - १ समचतुरस्त्रसंस्थान नामकर्म, २न्यग्रोध- परिमण्डलसंस्थान, ३ स्वातिसंस्थान, ४ कुब्जकसंस्थान, ५ वामनसंस्थान और ६ हूण्डकसंस्थान । जिस कर्मके उदयसे जीवका शरीर उपर नीचे तथा बीचमें समान भागरूप अर्थात् सुडोल हो उसे समचतुरस्त्रसंस्थान कहते हैं। जिस कर्मके उदयसे जीवका शरीर वटवृक्षकी तरह नाभिसे नीचे पतला और ऊपर मोटा हो उसे न्यग्राधपरिमण्डलसंस्थान कहते है। जिस कर्मके उदयसे शरीर सर्पकी बामीकी तरह ऊपर पतला और नीचे मोटा हो उसे स्वातिसंस्थान नामकर्म कहते है । जिस कर्मसे उदयसे जीवका शरीर कुबड़ा हो उसे कुब्जकसंस्थान नामकर्म कहते हैं और जिस कर्मके उदयसे बौना शरीर हो उसे वामनसंस्थान नामकर्म कहते हैं और जिस कर्मके उदयसे शरीरके अङ्गोपांग किसी खास आकृतिके न हों उसे हुण्डकसंस्थान नामकर्म कहते है । ९ - संहनन नामकर्म जिस कर्मके उदयसे हड्डियोंके बंधन में विशेषता हो उसे संहनन नामकर्म कहते हैं। इसके ६ भेद है१- वज्रवृषभनाराच संहनन, २- वज्रनाराच संहनन, ३- नाराच संहनन, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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