________________
१३०]
मोक्षशास्त्र सटीक अष्टम अध्याय बन्धतत्वका वर्णन
बन्धके कारणमिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगाबन्धहेतवः१
अर्थ- मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये पांच कर्मबन्धके कारण हैं।
मिथ्यादर्शन- अतत्वोंके श्रद्धानको अथवा तत्वोंका श्रद्धान न होनेको मिथ्यादर्शन कहते है। इसके दो भेद हैं-१-गृहीत मिथ्यादर्शन और २-अगृहीत मिथ्यादर्शन।
गृहीत मिथ्यादर्शन- परोपदेशके निमित्तसे जो अतत्व श्रद्धान हों, उसे गृहीत मिथ्यादर्शन कहते है। .
अगृहीत मिथ्यादर्शन- परोपदेशके बिनाही केवल मिथ्यात्वकर्मके . उदयसे जो हो, उसे अगृहीत मिथ्यादर्शन कहते हैं।
___ मिथ्यादर्शनके ५ भेद और भी हैं- १-एकांत, २-विपरीत, ३-संशय,४-वैनयिक और ५-अज्ञान।
एकांत मिथ्यादर्शन- अनेक धर्मात्मक वस्तुयें यह इसी प्रकार है, इस तरहके एकांत अभिप्रायको एकांत मिथ्यादर्शन कहते हैं। जैसे बौद्ध मतवाले वस्तुको अनित्य ही मानते हैं और वेदांती सर्वथा नित्य ही मानते हैं । अन्त-धर्म, गुण ॥
विपरीत मिथ्यादर्शन- परिग्रह सहित भी गुरू हो सकता है, केवली केवलाहार करते है, स्त्रीको भी मोक्ष प्राप्त हो सकता हैं, इत्यादि उल्टे श्रद्धानको विपरीत मिथ्यादर्शन कहते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org