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सप्तम अध्याय
देशव्रतके अतिचार
आनयनप्रेष्यप्रयोगशब्दरूपानुपातपुद्गलक्षेपाः । ३१ ।
अर्थ- आनयन [ मर्यादासे बारहकी चीजको बुलाना ], प्रेष्यप्रयोग [ मर्यादाके बाहर नौकर आदिको भेजना ], शब्दानुपात [ खांसी आदिके शब्दके द्वारा मर्यादासे बाहरवाले आदमियोंको अपना अभिप्राय समझा देना ], रूपानुपात [ मर्यादासे बाहर रहनेवाले आदमियोंको अपना शरीर दिखाकर इशारा करना ] और पुद्गलक्षेप [ मर्यादासे बाहर कंकर पत्थर फेंकना ], ये पांच देशव्रतके अतिचार हैं ॥ ३१ ॥
अनर्थदण्डव्रतके अतिचारकन्दर्पकौत्कुच्यमौखर्यासमीक्ष्याधिकरणोपभोगपरिभोगानर्थक्यानि ॥ ३२ ॥
अर्थ- कन्दर्प (रागसे हास्य सहित अशिष्ट वचन बोलना ), कौत्कुच्य ( शरीरके कुचेष्टा करते हुए अशिष्ट वचन बोलना ), मौखर्य (पृष्टतापूर्वक आवश्यकतासे अधिक बोलना ), असमीक्ष्याधिकरण (बिना प्रयोजन, मन वचन कायकी अधिक प्रवृति करना) और उपभोगपरिभोगानर्थक्य ( भोग उपभोगके पदार्थोंका आवश्यकतासे अधिक संग्रह करना), ये पाँच अनर्थदण्डव्रतके अतिचार हैं ॥ ३२ ॥
सामायिक शिक्षाके अतिचार
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योगदुष्प्रणिधानानादरस्मृत्यनुपस्थानानि ॥ ३३ ॥
अर्थ- मनोयोग दुष्प्रणिधान ( मनकी अन्यथा प्रवृति करना ), बाग् योगदुष्प्रणिधान ( वचनकी अन्यथा प्रवृति करना ), कार्ययोगदुष्प्रणिधान (शरीरकी अन्यथा प्रवृति करना), अनादर ( उत्साह रहित होकर सामायिक करना) और स्मृत्यनुपस्थान (एकाग्रताके अभावमें
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