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१०८]
माक्षशास्त्र पीक
देव आयुका आस्त्रवसरागसंयमसंयमासंयमाकामनिर्जराबालतपांसि
दैवस्य ॥२०॥ अर्थ- सरागसंयम, संयमासंयम, अकाम निर्जरा और बाल तप ये देव आयुके आस्रव हैं ' ॥२०॥
सम्यक्त्वं च ॥२१॥
अर्थ- सम्यग्दर्शन भी देव आयु कर्मका आस्रव है।
नोट- १-इस सूत्रको पृथक् लिखनेका प्रयोजन यह है कि सम्यक्त्व अवस्थामें वैमानिक देवोंकी ही आयुका आस्रव होता है।
नोट- २-यद्यपि सम्यग्दर्शन किसी भी कर्मके बन्धमें कारण नहीं है तथापि सम्यग्दर्शनकी अवस्थामें जो रागांश पाया जाता है उसीसे बन्ध होता है। इसी तरह सरागसंयम, संयमासंयम आदिके विषयमें भी जानना चाहिये ॥२१॥
अशुभ नामकर्मका आस्त्रवयोगवक्रता विसम्वादनं चाशुभस्यनाम्नः ॥२२॥
अर्थ- योगोंकी कुटिलता और विसम्वादन-अन्यथा प्रवृति करना अशुभ नामकर्मका आस्रव है।॥२२॥
शुभ नामकर्मका आस्त्रव
तद्विपरीतं शुभस्य ॥२३॥ 1. इन सबका शब्दार्थ पीछे १२वें सूत्रके नोटमें लिखा जा चुका है। 2. येनांशेन मुद्दष्टिस्तेनांशेनास्य बन्धने नास्ति।
येनांशेन तु रागस्तनांशनाम्य बन्धने भवति ।। - अमृतचन्द्रपरि 3. आयु कमका आस्रव सामान्यरूपसे जीवनक त्रिभागमें होता है। अर्थात आयुके दो भाग निकल जाने पर तृतीय भागके प्रारंभ होता है।
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