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________________ १०२] मोक्षशास्त्र सटीक जीवाधिकरणके भेदआद्यं संरम्भसमारम्भारम्भयोगकृतकारितानुमतक षायविशेषैस्त्रिस्त्रिस्त्रिश्चतुश्चै कशः॥८॥ अर्थ-आदिका जीवाधिकरण आस्त्रव-संरम्भ, समारम्भ, आरम्भ, मन वचन कायरुप तीन योग कृत कारित अनुमोदना तथा क्रोधादि चार कषायोंकी विशेषतासे १०८ भेदरुप हैं। भावार्थ- संरम्भादि तीनोमें तीन योगोंका गुणा करनेसे ९ भेद हुए। इन ९ भेदोंमें कृत आदि तीनका गुणा करने पर २७ भेद हुए। और इन २७ भेदोंमें ४ कषायका गुणा करनेसे कुल १०८ भेद हए। संरम्भ- हिंसादि पापोके करनेका मनमें निचार करना संरम्भ है। समारम्भ- हिंसादि पापोंके कारणोंका अभ्यास करना समारम्भ है। आरम्भ- हिंसादि पापोंके करनेका प्रारम्भ कर देना आरम्भ है। कृत- स्वयं करना कृत है। . कारित- दूसरेसे कराना कारित है। अनुमत- दूसरेके द्वारा किये हुए कार्यको भला समझना अनुमत है॥८॥ अजीवाधिकरणके भेदनिर्वर्तनानिक्षेपसंयोगनिसर्गा द्विचतर्द्वित्रिभेदाः परम्॥९॥ अर्थ- पर अर्थात् अजीवाधिकरण आस्रव-दो प्रकारकी निवर्तना, चार प्रकारका निक्षेप, दो प्रकारका संयोग और तीन प्रकारका निसर्ग, इस तरह ११ भेदवाला है। निर्वर्तना- रचना करनेको निर्वर्तना कहते हैं। इसके दो भेद हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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