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________________ पंचम अध्याय [ ९५ अर्थ- जो द्रव्यके आश्रय हों और स्वयं दूसरे गुणोंसे रहित हों वे गुण कहलाते हैं, जैसे-जीवके ज्ञान आदि। ये जीव द्रव्यके आश्रय रहते हैं तथा इनमें कोई दूसरा गुण नहीं रहता ॥४१॥ पर्यायका लक्षणतद्भावः परिणामः ॥४२॥ अर्थ- जीवादिद्रव्य जिस रूप हैं उनके उसीरूप रहनेको परिणाम या पर्याय कहते हैं। जैसे जीवकी नर-नारकादि पर्याय ॥४२॥ विशेष- पर्यायके दो भेद हैं-१ व्यञ्जन पर्याय और २ अर्थ पर्याय। प्रदेशतत्व गुणके विकारको व्यञ्जन पर्याय कहते हैं और अन्य गुणोंके अविभागी प्रतिच्छेदोंके परिणमनको अर्थ पर्याय कहते हैं। इति श्रीमदुमास्वामिविरचिते मोक्षशास्त्रे पञ्चमोऽध्यायः ॥ प्रश्रावली (१) अस्तिकाय किसे कहते हैं व कितने हैं ? (२) जीव असंख्यात-प्रदेशी होनेपर भी अल्प शरीरमें किस प्रकार रहता है ? (३) कालद्रव्यके क्या उपकार हैं ? (४) अलोकाकाशके आकाशमें कालद्रव्यके बिना उत्पाद आदि किस तरह होते हैं ? (५) पुद्गल द्रव्यके कितने प्रदेश हैं ? (६) "अर्पितानर्पितसिद्धेः' इस सूत्रका क्या आशय है ? (७) 'जघन्य गुण' शब्दका क्या अर्थ है ? (८) बन्ध किन-किनका होता है ? (९) यदि कर्म द्रव्य न मानकर उसका कार्य आकाश द्रव्यसे लिया जावे तो क्या हानि होगी? (१०) काल द्रव्य अजीव क्यों है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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