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चतुर्थ अध्याय ज्योतिष्क देवोंकी जघन्य आयु
तदष्टभागोऽपरा ॥४१॥ अर्थ-ज्योतिष्क देवोंकी जघन्य आयु उस-एक पल्यके आठवें भाग है ॥४१॥
लौकांतिक देवोंकी आयुलौकांतिकानामष्टौ सागरोपमाणि
सर्वेषाम् ॥४२॥ अर्थ- [ सर्वेषाम् ] समस्त [लोकांतिकानाम् ] लोकांतिक देवोंकी जघन्य और उत्कृष्ट आयु [ अष्टौ सागरोपमाणि] आठ सागरप्रमाण है ॥४२॥ इति श्रीमदुमास्वामिविरचिते मोक्षशास्त्रे चतुर्थोऽध्यायः।
प्रश्रावली (१) भवनत्रिकमें लेश्याएँ कौन कौन होती हैं ? (२) सोलहवें स्वर्गके आगेके देव प्रवीचारके बिना सुखी
किस तरह रहते हैं ? (३) सामानिक आत्मरक्षक और किल्विषिक जातिके
देवोंके लक्षण बताओ। (४)
स्वर्गलोकका नकशा खींचकर यथास्थान सब
व्यवस्था दर्शाओ। (५) सर्वार्थसिद्धिमें जघन्य स्थिति कितनी है ? (६) व्यन्तर देव कहां रहते हैं ? (७) अढ़ाईद्वीपमें कितने सूर्य और कितने चन्द्रमा हैं ?.. (८) दिन आदिका विभाग किससे होता है ? (९) स्वर्ग में दिन रात होते हैं या नहीं? (१०) लोकांतिक देवोंकी कितनी आयु है ?
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