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________________ [ ७७ - चतुर्थ अध्याय ज्योतिष्क देवोंकी जघन्य आयु तदष्टभागोऽपरा ॥४१॥ अर्थ-ज्योतिष्क देवोंकी जघन्य आयु उस-एक पल्यके आठवें भाग है ॥४१॥ लौकांतिक देवोंकी आयुलौकांतिकानामष्टौ सागरोपमाणि सर्वेषाम् ॥४२॥ अर्थ- [ सर्वेषाम् ] समस्त [लोकांतिकानाम् ] लोकांतिक देवोंकी जघन्य और उत्कृष्ट आयु [ अष्टौ सागरोपमाणि] आठ सागरप्रमाण है ॥४२॥ इति श्रीमदुमास्वामिविरचिते मोक्षशास्त्रे चतुर्थोऽध्यायः। प्रश्रावली (१) भवनत्रिकमें लेश्याएँ कौन कौन होती हैं ? (२) सोलहवें स्वर्गके आगेके देव प्रवीचारके बिना सुखी किस तरह रहते हैं ? (३) सामानिक आत्मरक्षक और किल्विषिक जातिके देवोंके लक्षण बताओ। (४) स्वर्गलोकका नकशा खींचकर यथास्थान सब व्यवस्था दर्शाओ। (५) सर्वार्थसिद्धिमें जघन्य स्थिति कितनी है ? (६) व्यन्तर देव कहां रहते हैं ? (७) अढ़ाईद्वीपमें कितने सूर्य और कितने चन्द्रमा हैं ?.. (८) दिन आदिका विभाग किससे होता है ? (९) स्वर्ग में दिन रात होते हैं या नहीं? (१०) लोकांतिक देवोंकी कितनी आयु है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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