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________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org तीन लोक की रचना को. = कोश वोसोजन सिकर लो लोक सामान्य = १४ राजू संकेत ३६ राजू अ ३६ राजू राजू अस नाती = १ ३ राजू ३२९६ २१४९ ई धनुष E = ३२१६२२४१ धनुष लो का का श सुमेरु पर्वत मध्य लोक अ ५ राजू, अ आरण है अच्युत आनती है प्राणत लान्तव शतार सहस्त्रार शुक्र 0 महाशुक्र । कापिष्ट ब्रह्म ब्रह्मोत्तर सानत्कुमारस सौधर्म का साप के शिखर अदिरा ज्योति लोक ११० यो... రీ प्रभा तमः प्रमा भातवलय माहेन्द्र ऐशान राजू ---- लाक के तलव वातवलय का लो * लोक के नीचे वाले एक राजू प्रमाण कलकल नामक स्थादर लोक को मारो ओर से घेर कर व्यवस्थित ६०,००० योजन मोटा वातवलय । का श कलय (तसनाली) 14 राजू बातवलय राजू वातवलय २०,००० यो २०.००० यो. २०,००० योजन योजन याजन उपर उत्तर * नीचे का दिगम्बर जैन पुस्तकालय, सूरत फोन :- 102610 427621 दक्षिण * वातवलय का ७ राजू श लो सनाली १४ राजू → लोकके बहुमध्य भागमे लम्बायमान का श श्री मोक्ष शास्त्र (तत्वार्थ सूत्र)
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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