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________________ 80 / सूक्तरत्नावली की प्रगति होती है। सभी वृक्षों में वृक्षत्व समान होने पर भी चम्पा का वृक्ष विशेष माना जाता है। गुणमुक्ताः स्वयंपापाः, परच्छिद्रगवेषिणः । बाणा बाणासनान्मुक्ता, निदर्शनमिहाऽभवत्।। 317 ।। गुण से मुक्त हुआ अर्थात् गुण से रहित पापी व्यक्ति दूसरों के दोष खोजता है। इसका उदाहरण है धनुष से मुक्त हुआ बाण। दौष्कर्य जायते तुंगा,-च्छ्रयतां न च मुंचताम्। चिन्त्याऽत्र शैलशृंगेषु, क्रियाऽऽरोहावरोहयोः।।31811 दोष उत्पन्न होने पर आश्रय देने वालों के बढ़ जाते है। छोड़ने वालों के नहीं। पर्वत की चोटी पर आरोह एवं अवरोह दोनों ही क्रिया होती है। सर्वशक्त्याश्रितोऽनर्थ,-हेतुः स्वोऽपि जडाशयः। स्यादन्तःपतितानां किं, कूपः स्वोऽपि न मृत्यवे? ||31911 सर्वशक्तिवान् के आश्रित होते हुए भी मूर्ख व्यक्ति स्वयं ही अपने अनर्थ का कारक होता है। कूप के अन्दर गिरे हुए व्यक्तियों के लिए उनके स्वयं का कूप भी क्या उनकी मृत्यु का कारण नहीं होता है ? अर्थात् होता है। यदागमे भवेद् वृद्धि,-स्तन्नाशे चार्तिरर्हति । यौवनेऽभ्युन्नतौ तस्मिन् गते च पतितौ स्तनौ।।32011 जब सम्पन्नता की वृद्धि होती है तब प्रसन्नता होती है और उसका नाश होने पर दुख का कारण बन जाती है। यौवनावस्था मे कुचौं की उन्नति होती है और वृद्धावस्था में उसी उन्नती के चले जाने पर दुख होता है। sammam Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001793
Book TitleSuktaratnavali
Original Sutra AuthorSensuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2008
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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