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________________ 10 / सूक्तरत्नावली प्रतिपृच्छना (पूर्वपठित शास्त्र के सम्बन्ध में शंकानिवृत्ति के लिए प्रश्न करना) से जीव सूत्र, अर्थ और तदुभय - दोनों से सम्बन्धित कांक्षामोहनीय (संशय) का निराकरण करता है। भन्ते ! परावर्तना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? परावर्तना से अर्थात् पठित पाठ के पुनरावर्तन से व्यंजन (शब्द-पाठ) स्थिर होता है और जीव पदानुसारिता आदिव्यंजना-लब्धि को प्राप्त होता है। भन्ते ! अनुप्रेक्षा से जीव को क्या प्राप्त होता है? अनुप्रेक्षासे अर्थात्सूत्रार्थ केचिन्तन-मनन से जीवआयुष्य-कर्म को छोड़कर शेष ज्ञानावरणादि सात कर्मों की प्रकृतियों के प्रगाढ़ बन्धन को शिथिल करता है, उनकी दीर्घकालीन स्थिति को अल्पकालीन करता है, उनके तीव्र रसानुभाव को मन्द करता है, साथ ही बहुकर्म-प्रदेशों को अल्प-प्रदेशों में परिवर्तित करता है, आयुष्यकर्मका बन्धकदाचित् करता है, कदाचित् नहीं भी करता है, असातावेदनीयकर्म का पुन: पुन: उपचय नहीं करता है, जो संसार अटवी अनादि एवं अनन्त है, दीर्घमार्ग से युक्त है, जिसके नरकादि गतिरूप चार अन्त (अवयव) हैं, उसे शीघ्र ही पार करता है। भन्ते ! धर्मकथा (धर्मोपदेश) से जीव को क्या प्राप्त होता है ? धर्मकथासेजीवकर्मों की निर्जरा करता हैऔर प्रवचन (शासन एवं सिद्धान्त) की प्रभावना करता है। प्रवचन की प्रभावना करनेवाला जीव भविष्य में शुभ फल देने वाले पुण्य कर्मों का बन्ध करता है।' इसी प्रकार स्थानाङ्गसूत्र में भी शास्त्राध्ययन के क्या लाभ हैं ? इसकी चर्चा उपलब्धहोती है। इसमें कहा गया है कि सूत्र की वाचना के 5 लाभ हैं- 1. वाचना से श्रुत का संग्रह होता है अर्थात् यदि अध्ययनका क्रम बना रहे तो ज्ञान की वह परम्परा अविच्छिन्न रूप से चलती रहती है। 2. शास्त्राध्ययन-अध्यापन की प्रवृत्ति से शिष्य का हित होता है, क्योंकि वह उसके ज्ञान प्राप्ति का महत्त्वपूर्ण साधन है। 1. उत्तराध्ययनसूत्र, 29/20-24. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001793
Book TitleSuktaratnavali
Original Sutra AuthorSensuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2008
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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